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________________ 116... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक सुखपूर्वक अधिकतम समय तक स्थिर होकर शरीर को साधना आसन कहलाता है। साधक तपश्चर्या में किसी न किसी स्थिति में शरीर को साधकर रखता है। स्वामी स्वात्माराम ने आसन की यथार्थ स्थिति का चित्रण करते हुए कहा है कि आसन से न केवल शरीर स्वस्थ रहता है बल्कि वह शरीर के भारीपन को दूरकर उसे आलस्य मुक्त रखता है । बाह्यतः तप का भी यही प्रभाव देखा जाता है। 17 बौद्ध धर्म में तपश्चर्या के लिए आसन को अनिवार्य माना है। वैदिक परम्परा भी 'स्थिर सुखमासनं' को स्वीकार करती है। सामान्यतया त्रिविध-परम्पराओं में तपोयोग हेतु निश्चित आसनों के प्रयोग का निर्देश है। जिस आसन द्वारा मन स्थिर होता है वही आसन तपाराधना के लिए उपयोगी कहा गया है। तप साधना काल में चित्तस्थैर्य परमावश्यक है और उसका सद्भाव पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन आदि से ही शक्य है। इस प्रकार सिद्ध होता है कि तप और आसन के बीच एक अविभाज्य सम्बन्ध है । तप और प्राणायाम तपश्चर्या के यथार्थ स्वरूप को उजागर करने में प्राणायाम एक महत्त्वपूर्ण घटक है। प्राणायाम के द्वारा प्राण का नियन्त्रण एवं मन की चञ्चलता दूर होती है। तपश्चर्या के लिए मन की एकाग्रता अनिवार्य है। उस स्थिति में प्राणायाम प्रयोग से तपःसाधना को सुलभ और सरल बनाया जा सकता है। वायु के ग्रहण और निष्कासन की प्रक्रिया श्वसन क्रिया है। इसी श्वसन प्रणाली को नियन्त्रित करना प्राणायाम है। योग दर्शन के अनुसार प्राणायाम चित्त संस्कारों को स्थिर बनाकर अविद्या आदि क्लेशों को नष्ट कर विवेक ख्याति को प्राप्त कराने में सहायकभूत है | 18 वैदिक मन्तव्य में विवेक ख्याति ही ज्ञान का चरमोत्कर्ष है और प्रकारान्तर से इसे ही तप का परम उत्स स्वीकार किया गया है। बौद्ध मत में प्राणायाम 'आनापानस्मृति' के नाम से विश्रुत है। इसके अभ्यास से कर्मस्थान की भावना सिद्ध होती है जो तप का ही प्रतिरूप है। इसकी सहायता से बौद्ध अनुयायी विशेष फल को प्राप्त करते हैं। 19 जैन चिन्तन में प्राणायाम, तपश्चर्या का एक प्रमुख साधन माना गया है। तपश्चर्या में मन को संक्लेश रहित करने एवं शरीर को साधने में प्राणायाम आधारभूत तत्त्व है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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