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________________ तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व...105 चौदह पूर्वो के ज्ञाता आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने तप की अनिवार्यता दर्शाते हुए कहा है कि - नाणं पयासगं सोहओ तवो, संजमो य गुत्तिकरो। तिण्हंपि समाओगे, मोक्खे जिणसासणे भणिओ ।। ज्ञान सम्पूर्ण जगत के समस्त जीवादिक पदार्थों के स्वरूप को प्रकाशित करता है। तप अनादिकाल से आत्मा पर छाए हुए ज्ञानावरणीय आदि अष्ट कर्मों के आवरण को दूर करता है। यद्यपि समस्त जीव कर्मों का भोग करते हुए प्रति समय शुभाशुभ कर्मों की निर्जरा करते हैं, परन्तु तप के माध्यम से जो निर्जरा होती है वह कर्म भोग की निर्जरा से कई गुणा अधिक होती है तथा संयम नवीन कर्म के रूप में आने वाले अशुभ कर्मों को रोकता है। इस तरह आत्म प्रकाशक ज्ञान, आत्म शोधक तप एवं आत्म रक्षक संयम - इन तीनों का संयोग होने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रस्तुत विषय के स्पष्टीकरण हेतु यह बिन्दु भी अवश्य विचारणीय है कि तेरहवें गुणस्थान में क्षायिक सम्यग्दर्शन, केवलज्ञान और यथाख्यातचारित्र ये तीनों प्राप्त हो जाते हैं अर्थात सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र रूप रत्नत्रय की सम्पूर्ण प्राप्ति हो जाती है। तदुपरान्त भी सम्पूर्ण कर्म क्षय रूप मोक्ष प्राप्ति में देशोनक्रोड पूर्व जितना समय शेष रह सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इन तीनों के अतिरिक्त भी कोई साधन हैं जिसके सिद्ध होने या प्राप्त होने के बाद ही मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह योग निरोध रूप शुक्लध्यान का चतुर्थ पाया है। जो तप के बारह प्रकार के भेदों में से ध्यान नाम का भेद है वही मोक्ष का अनन्तर कारण है। इसी प्रकार श्रेणी आरोहण में भी तप उपयोगी है। जो जीव क्षपक श्रेणी का आरोहण करते हैं सम्भव है कि श्रेणी आरोह से पूर्व उसकी सत्ता में उत्कृष्ट रूप से सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपम या निकाचित कर्मों का बंध हो। शास्त्रों में उल्लेख है कि केवलज्ञान प्राप्त करने वाला जीव अन्तर्मुहूर्त काल पूर्व तक मिथ्यादृष्टि हो सकता है। उस स्थिति में सत्तागत निकाचित कर्मों का क्षय अपूर्वकरण के समय एक विशेष शक्ति के रूप में झलकता है और वह ‘तवसा उ निकाइयाणंपि' वचन के अनुसार तप के द्वारा ही सम्भव है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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