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________________ xii...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक जैन परम्परा में तप साधना के लिए जो प्रत्याख्यान या नियम करवाए जाते हैं उनमें स्पष्टत: यह कहा गया है कि तप उसी समय तक करणीय है जब तक वह हमारी आत्म विशुद्धि एवं समाधि में सहायक हो अत: तप को प्रमुखता देते हुए भी जैन चिन्तकों ने अज्ञान मूलक एवं हिंसा मूलक तप और त्याग की सदैव आलोचना की है। जैन परम्परा में प्राचीन काल से त्याग, वैराग्य और ज्ञानमूलक तप को ही महत्त्व दिया गया है। तप आसक्ति तोड़ने का अनुपम साधन है। व्यक्ति में सबसे अधिक आसक्ति देह आसक्ति है, उस देहासक्ति की कमी का परीक्षण करने के लिए तप ही एक मात्र माध्यम है। यह सत्य है कि शरीर के बिना साधना नहीं हो सकती अतः जहाँ एक ओर जैन दर्शन उपवास आदि तप को महत्त्व देता है वहीं दूसरी ओर वह यह भी मानता है कि साधना का आधार देह है अत: देह का संरक्षण आवश्यक है।जैन आम्नाय एकान्त रूप से कठोर तपस्या की समर्थक भी नहीं है। इसके अनुसार तप आवश्यक है किन्तु वह मात्र देह को दण्ड देना नहीं है अपितु चैतसिक शुद्धि का भी अनुपम उपाय है। जैन परम्परा के प्राचीन आगमों में विविध प्रकार के तपों का उल्लेख मिलता है। उत्तराध्ययनसूत्र के तीसवें अध्याय में छ: बाह्य तपों का स्वरूप स्पष्ट करने के पश्चात यह भी बताया गया है कि तप का प्रयोजन मात्र आत्म विशद्धि है। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि साधक ऐहिक अथवा पारलौकिक उपलब्धि के लिए तप न करें। उसे एकान्त निर्जरा के लिए तप करना चाहिए। अन्तगड़दशा के वर्तमान संस्करण में आठवें वर्ग में कनकावली, रत्नावली, लघुसिंहक्रीडित, आयंबिल वर्धमान आदि तपों का उल्लेख हुआ है। परवर्ती काल में जैन आचार्यों ने हिन्दू परम्परा से भी अनेक प्रकार के तपों का ग्रहण किया है और यह भी सत्य है कि कालान्तर में जैन परम्परा में भौतिक उपलब्धि के लिए तप किए जाने के उल्लेख मिलते हैं। किन्तु मेरी दृष्टि से यह जैन परम्परा का विकृत स्वरूप ही है जो अन्य परम्पराओं के प्रभाव से जैनाचार में प्रविष्ट हो गया है। आचारदिनकर आदि परवर्ती ग्रन्थों में विविध प्रकार के तपों का विस्तृत उल्लेख मिलता है। इससे यह सिद्ध होता है कि जैनों की तप अवधारणा कालान्तर में अन्य
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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