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________________ 66...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक अविणीयस्स संपत्ती विणियस्स य।" अविनीत को सब विपत्तियाँ घेरे रहती है और सुविनीत को सब सम्पत्तियाँ।119 विनय की महिमा में इससे बढ़कर यह भी कहा जा सकता है कि ज्ञानी का विनय करने से संघ में ज्ञान का अभिवर्द्धन होता है, ज्ञान का आदर होता है। दर्शन विनय का आचरण करने से व्यक्ति शिष्ट, सभ्य एवं सद्व्यवहारी बनता है। स्थानांगसूत्र में विद्यादान के तीन अधिकारियों में एक विनीत माना गया है।120 अविनीत को विद्या देना भी अपराध माना गया है। इसका अर्थ यह है कि अविनीत जीवन में सद्गुण प्राप्त नहीं कर सकता। सद्गुण एवं सद्ज्ञान प्राप्ति के लिए विनयशील बनना परमावश्यक है। एक जगह कहा है - "विनयायत्ताश्च गुणाः सर्वे' समस्त गुण विनय के अधीन रहते हैं। इससे भी बढ़कर लिखा गया है - "सकलगुण भूषा च विनयः।" समस्त गुणों का श्रृंगार विनय ही है। __ सार रूप में कहा जा सकता है कि जैसे पृथ्वी समस्त जीवों का आधार है वैसे ही समस्त सद्गुणों का आधार विनय है।121 जैसे चन्दन की महिमा सुगन्ध से है, चन्द्रमा का गौरव सौम्यता से है, अमृत का महत्त्व मधुरता से है वैसे ही मनुष्य का गौरव विनय गुण के कारण है।122 3. वैयावृत्त्य तप ____ यह आभ्यन्तर तप का तीसरा भेद है। वैयावृत्त्य का प्रचलित अर्थ है - सेवा, शुश्रुषा। ___टीकाकारों के अभिमतानुसार धर्म-साधना में सहयोग करने के लिए संयमी को शुद्ध, आहार, औषध आदि प्रदान करना तथा उसके अन्य कार्यों में सहयोग देना वैयावृत्य कहलाता है।123 ... सीधे शब्दों में कहें तो गुरुजनों या पूज्यजनों के आवश्यक कार्यों को योग पूर्वक सम्पन्न करना वैयावृत्य कहलाता है। निश्चय दृष्टि से तीर्थङ्कर परमात्मा की आज्ञा का अनुसरण करना, वैयावृत्य है। शास्त्रों में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है "आणाए धम्मो आणाए तवो" अर्थात आज्ञा ही धर्म है और आज्ञा ही तप है। अत: वास्तव में परमात्म पथ का अनुगमन करना ही वैयावृत्य है। यहाँ प्रश्न होता है कि वैयावृत्य कौन कर सकता है ? प्रत्येक मानव के
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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