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________________ 62...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक आचार्य मधुकर मुनि जी ने इसका सटीक जवाब दिया है कि विनय सिर्फ एक सद्व्यवहार का ही नाम नहीं है। विनय का दायरा बहुत व्यापक है। सद्व्यवहार तो विनय का एक प्रत्यक्ष फल है। विनय का भावार्थ अत्यन्त गहरा है जैसे- यश-प्रतिष्ठा का मोह नहीं रखना, अहंकार को मिटा देना, स्वच्छन्द वृत्ति को संयमित रखना, गुरु की आज्ञानुसार आचरण करना, यह सब विनय की परिभाषा में समाविष्ट होते हैं।102 स्वरूपतः विनय एक कठोर मनोनुशासन है, आत्मसंयम की आराधना है, इन्द्रिय विजय की साधना है। आगम ग्रन्थों में विनय तप के भेद-प्रभेदों की विशद चर्चा की गयी है, उनका अध्ययन करने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि विनय मात्र एक सद्व्यवहार नहीं है प्रत्युत वह आत्मा का दुर्लभ गुण है। उसकी प्राप्ति के लिए संयम, अनुशासन एवं ऋजुता भावों की साधना करनी पड़ती है। इसी दृष्टि से विनय को तप का स्थान दिया गया है। प्रकार- भगवतीसूत्र103 स्थानांगसूत्र104 औपपातिकसूत्र 05 आदि में विनय सात प्रकार का बताया गया है - 1. ज्ञान विनय 2. दर्शनविनय 3. चारित्रविनय 4. मनविनय 5. वचनविनय 6. कायविनय और 7. औपचारिकविनय। 1. ज्ञान विनय - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान आदि पांच ज्ञानों के प्रति भक्ति बहुमान के भाव रखना ज्ञान विनय है अथवा जिन्होंने इन ज्ञानों के माध्यम से भावों को देखा है, तत्त्व को जाना है, उन ज्ञानियों के प्रति श्रद्धाभाव रखना ज्ञानविनय है।106 ज्ञानविनय पांच प्रकार का बतलाया गया है - (i) मतिज्ञानविनय, (ii) श्रुतज्ञानविनय, (iii) अवधिज्ञानविनय, (iv) मनःपर्यवज्ञानविनय, (v) केवलज्ञानविनय। 2. दर्शन विनय- सम्यक्दर्शी गुरुजनों का सम्मान करना, सेवा करना एवं सम्यक्त्व के प्रति श्रद्धा रखना दर्शन विनय है। आगम ग्रन्थों में दर्शन विनय के दो प्रकार निरूपित हैं - (i) शुश्रुषा विनय और (ii) अनाशातना विनय।107 (i) शुश्रुषा विनय - यह विनय अनेक प्रकार से किया जाता है। यथा - अभ्युत्थान - गुरुजनों या गुणीजनों के आने पर बहुमानार्थ खड़े होना। आसनाभिग्रह – गुरु जहाँ बैठना चाहे वहाँ अथवा उनके बैठने योग्य स्थान पर आसन रखना। आसन प्रदान – गुरुजनों को आसन देना। इसी तरह गुरुओं का
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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