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________________ 54... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक विषय हैं तत्संबंधी अनुकूल-प्रतिकूल विषयों में राग-द्वेष की बुद्धि नहीं रखना, इन्द्रिय प्रतिसंलीनता तप कहलाता है। स्पष्ट है कि इन्द्रियों को योग्य-अयोग्य जैसा भी देखने-सुनने - चखने आदि को मिले, उसमें समभाव रखना इन्द्रिय प्रतिसंलीनता है। 2. कषाय प्रतिसंलीनता तप- कषाय संलीनता तप चार प्रकार का बताया गया है 75_ (i) उदय में आने वाले क्रोध का निरोध करना तथा उदय प्राप्त क्रोध को विफल कर देना क्रोध संलीनता तप है। (ii) उदय में आने वाले अहंकार का निरोध करना तथा उदय प्राप्त मान को प्रभाव शून्य कर देना, मान संलीनता तप है। (iii) उदय में आने वाली माया का निरोध करना तथा उदय प्राप्त छलकपट पूर्ण वृत्ति को निष्प्रभ कर देना, माया संलीनता तप है। (iv) उदय में आने वाले लोभ का निरोध करना तथा उदय प्राप्त लोभ को विफल कर देना, लोभ संलीनता तप है। दूसरे शब्दों में क्रोध आदि चतुः कषायों के उदय का निरोध और उदीर्ण का विफलीकरण करना, कषाय संलीनता तप कहलाता है। 76_ 3. योग प्रतिसंलीनता तप- योग संलीनता के तीन प्रकार (i) मन संलीनता - दुर्विचार मन का निरोध और सद्विचार उत्पन्न करने का अभ्यास करना, मनोयोग प्रतिसंलीनता तप है। (ii) वचन संलीनता अशुभ वचन का निरोध करना अर्थात दुर्वचन नहीं बोलना और सवचन बोलने का अभ्यास करना, वाक्योग प्रतिसंलीनता तप है। (iii) काय संलीनता बिना प्रयोजन हाथ, पैर आदि को हिलाना नहीं और प्रयोजन होने पर यातनापूर्वक चंक्रमण आदि करना, काय संलीनता तप है। 4. विविक्त- शयनासन प्रतिसंलीनता तप- उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार एकान्त, अनापात और स्त्री- पशु आदि से रहित शयन एवं आसन का सेवन करना, विविक्त शयनासन तप है। 77 मूलाराधना के अनुसार जहाँ पर शब्द, रस, गन्ध और स्पर्श के द्वारा चित्तविक्षेप नहीं होता, स्वाध्याय और ध्यान में व्याघात नहीं होता वह विविक्तशय्या कहलाता है। 78 -
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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