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________________ योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ... 277 के उद्देश- समुद्देश- अनुज्ञादि पूर्ण कर लेने के पश्चात यह विधि की जाती है। विधिमार्गप्रपा आदि के अभिमतानुसार स्वाध्याय प्रतिक्रमण करने के लिए कालग्राही और दंडधर एक खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन कर कहें- सज्झाउं पडिक्कमहं - स्वाध्याय प्रस्थापनादि करते समय लगे हुए दोषों का प्रतिक्रमण करते हैं। फिर एक खमासमण देकर कहें- सज्झाय पडिक्कमणत्थु काउसग्गु करेहं- स्वाध्याय में लगे दोषों से निवृत्त होने के लिए कायोत्सर्ग करते हैं, इतना कह अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्ण करके प्रकट में परमेष्ठी मन्त्र बोलें। इसी तरह प्राभातिक, वैरात्रिक, व्याघातिक एवं अर्द्धरात्रिक के नामोच्चारण पूर्वक काल का प्रतिक्रमण करें। जैसे कि एक खमासमण देकर कहें - पाभाइकालं पडिक्कमहं । पुनः एक खमासमण देकर कहें- पाभाइकाल पडिक्कमणत्थु काउस्सग्गु करेहं पूर्वक, अन्नत्थ सूत्र बोलकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें | पूर्णकर प्रकट में परमेष्ठी मन्त्र बोलें। स्वाध्याय प्रस्थापना सम्बन्धी नियम • स्वाध्याय प्रस्थापना की क्रिया कालग्रहण एवं कालप्रवेदन के पश्चात की जाती है। • यह अनुष्ठान विधि वाचनाचार्य और योगवाही मुनियों के द्वारा सम्पन्न होती है। • इस विधि में कालग्राही एवं दांडीधर मुनि की कोई भूमिका नहीं रहती है। • कुछ सामाचारियों के अनुसार स्वाध्याय प्रस्थापना खुले स्थापनाचार्य के समक्ष की जानी चाहिए। • स्वाध्याय प्रस्थापना करते समय अनुष्ठान करने वाले योगवाही एवं अनुष्ठान करवाने वाले आचार्य दोनों ही एक-एक स्वाध्याय की प्रस्थापना करें। यदि अनुष्ठान कराने वाले आचार्य का स्वाध्याय निष्फल हो जाये और अन्य आचार्य आदि न हों तो योगवाही दो बार स्वाध्याय प्रस्थापना करें, ऐसी परम्परागत मान्यता है। • स्वाध्याय प्रस्थापक योगवाही एक से अधिक हों तो पहले एक मुनि पाटली आदि की प्रतिलेखना करें, फिर सभी योगवाही एक साथ पाटली की स्थापना करें। • स्वाध्याय प्रस्थापन करते समय अनुपयोगवश किसी योगवाही का
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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