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________________ जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन ... xlix में लगने वाले दोषों की आलोचना किस प्रकार करें ? मंडली के साथ आहार करते समय किन दोषों का वर्जन करना चाहिए? ऐसे कई बिन्दु मननीय हैं। प्रस्तुत शोध कृति में इन सब पहलुओं को सात अध्यायों में उजागर करने का प्रयास किया है। प्रथम अध्याय में भिक्षा का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ, भिक्षाचर्या के समानार्थी पर्यायवाची शब्दों का विश्लेषण एवं भिक्षा प्राप्ति के अनेक प्रकारों का वर्णन किया गया है। इसमें भिक्षा शुद्धि की नव कोटियाँ, भिक्षाटन करने वाले मुनि की उपमाएँ, आहार के प्रकार और आहार सेवन की विविध कोटियाँ भी बतलायी गयी हैं। इस प्रकार यह अध्याय भिक्षा का स्वरूप एवं उसके प्रकारों से सम्बन्धित है। द्वितीय अध्याय में भिक्षाचर्या की उपयोगिता, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसकी प्रासंगिकता, भिक्षा का उद्देश्य एवं भिक्षाचर्या सम्बन्धी विधि-विधानों के गूढ़ रहस्यों का प्रतिपादन किया गया है। तृतीय अध्याय में भिक्षाचर्या का अधिकारी कौन ? आहार करने योग्य स्थान कैसा हो? आहार कितने परिमाण में करना चाहिए? आहार देने का अधिकारी कौन ? भिक्षाचर्या सम्बन्धी मर्यादाएँ, भिक्षाचर्या के नियम, भिक्षा प्राप्ति के लिए निषिद्ध - अनिषिद्ध स्थान, इस प्रकार कई नियमोपनियमों का शास्त्रीय वर्णन करते हुए आधुनिक युग में भिक्षाचर्या के औचित्य एवं अनौचित्य तथा आहार की शुद्धता एवं औद्देशिकता के सम्बन्ध में विचार किया गया है। चतुर्थ अध्याय आहार में लगने वाले दोषों से सम्बन्धित है। इसमें मुख्य रूप से आहार लेते समय मुनि के द्वारा एवं आहार देते समय गृहस्थ के द्वारा कौन-कौनसे दोष लगते हैं? उन दोषों के हेतु और दोष सेवन के दुष्परिणामों की चर्चा की गई है। कुछ दोषों के अपवाद भी बताये गये हैं। पंचम अध्याय में भिक्षाचर्या से लेकर भिक्षा के अनन्तर सम्पन्न की जाने वाली समग्र विधियों का निरूपण किया गया है। इसमें मुख्यतया भिक्षाटन से पूर्व उपयोग विधि, भिक्षाटन से लौटने के पश्चात पाँव प्रमार्जन विधि, कायोत्सर्ग विधि, आलोचना विधि, आहार सेवन से पूर्व सहवर्ती मुनियों को निमन्त्रण, स्वाध्याय आदि की विधि तथा आहार के पश्चात पात्र प्रक्षालन एवं अतिरिक्त आहार का परिष्ठापन किस विधि पूर्वक किया जाता है ? इन सभी
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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