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________________ भिक्षाचर्या का ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अनुसंधान ...209 5. जो रुचिकर न हो उसे खाना । 45 से • दिगम्बर परम्परा में सातवाँ दोष साधारण नाम का है। घबराहट से या साधु को अन्न आदि प्रदान करना साधारण दोष कहलाता है | 46 • मूलाचार में दायक दोष का स्वरूप इस प्रकार निर्दिष्ट है - जिसे प्रसव हुआ हो, जो मद्य पीया हुआ हो, रोगी हो, मृतक को श्मशान पहुँचाकर आया हो या जिसके घर में मृतक का सूतक हो, नपुंसक हो, भूतग्रस्त हो, नग्न हो, मल-मूत्रादि की शंका दूरकर आया हो, मूच्छित हो, जिसे वमन हुआ हो, वेश्या हो, अंग मर्दन करने वाली हो, अति बाला हो, अति वृद्धा हो, भोजन कर रही हो, गर्भित हो, चक्षुहीन हो, पर्दे की ओट में बैठी हुई हो, नीचे या ऊँचे प्रदेश पर खड़ी हो - इन अवस्था वाले स्त्री या पुरुष के हाथ से आहार ग्रहण करना दायक दोष है। इसके अतिरिक्त जो मुख की हवा से या पंखे से अग्नि को फूंक रही हो, अग्नि द्वारा लकड़ी जला रही हो, राख द्वारा अग्नि को ढँक रही हो, पानी द्वारा अग्नि को बुझा रही हो, गोबर लीप रही हो, स्नान कर रही हो, बालक को दूध पीला रही हो - ऐसे दाता या दात्री से आहार ग्रहण करना भी दायक दोष है। 47 भय • श्वेताम्बर मान्यता में चालीस प्रकार के व्यक्ति आहार दान के लिए निषिद्ध बतलाये गये हैं। श्वेताम्बर मान्य कुछ दायक दोषों का उल्लेख दिगम्बर ग्रन्थों में भी प्राप्त है। • श्वेताम्बर मान्यतानुसार दूध-दही, ओसामण आदि लेपकृत द्रव्य का ग्रहण करना लिप्त दोष है जबकि दिगम्बर मान्यता में 'गेरू, हड़ताल, खड़िया, मिट्टी आदि से युक्त, कच्चे चावल आदि की पिट्ठी से युक्त, हरित वनस्पति एवं अप्रासुक जल से युक्त हाथ या पात्र द्वारा आहार ग्रहण करना लिप्त दोष है 1 48 इस तरह दोनों परम्पराओं में एषणा दोषों के क्रम-स्वरूप आदि में सामान्य अन्तर है। पाँच मांडली दोषों की अपेक्षा - श्वेताम्बर - दिगम्बर दोनों परम्पराओं में मंडली सम्बन्धी दोषों की संख्या में इस प्रकार मतभेद हैं संख्या वैभिन्य - श्वेताम्बर परम्परा में पाँच दोष मुनि की भोजन मंडली से सम्बन्धित माने गए हैं जबकि दिगम्बर अनगार धर्मामृत में 'मांडली' शब्द का कहीं उल्लेख नहीं है, इसका कारण यह है कि दिगम्बर मुनि सामूहिक भोजन नहीं करते हैं। इसमें भुक्ति सम्बन्धी चार दोष बतलाये गये हैं।49 ये दोष मंडली
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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