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________________ भिक्षाचर्या की विधि एवं उपविधियाँ ...177 कायोत्सर्ग करते समय चोलपट्टा घुटने से चार अंगुल ऊपर और नाभि से चार अंगुल नीचे रहे, दोनों हाथों को इस तरह लम्बा करके रखें कि चोलपट्टा दोनों कोहनियों के नीचे दब सके, बायें हाथ में मुखवस्त्रिका और दायें हाथ में रजोहरण को ग्रहण करके रखें तथा दोनों पाँवों के अग्रभाग में चार अंगुल की दूरी एवं पीछे भाग में चार अंगुल से कुछ कम की दूरी रहे।11 कायोत्सर्ग चिन्तन- इस कायोत्सर्ग मुद्रा में तल्लीन हुआ साधु भिक्षा में लगने वाले अतिचारों का चिन्तन करें तथा उसमें लगे दोषों को मन में धारण करके रखें क्योंकि उन दोषों की आलोचना गुरु के समक्ष की जाती है। आचार्य हरिभद्रसूरि ने यह भी कहा है कि गृहीत भिक्षा में लगने वाले दोषों का चिन्तन आसेवना और आलोचना इन दो पदों के चार विकल्पों सहित करें। स्पष्ट है कि अगीतार्थ मुनि हो तो जिस क्रम से अतिचार लगे हों उस क्रम से उनका स्मरण करें और गीतार्थ मुनि हो तो पहले अल्प प्रायश्चित्त वाले, फिर उत्तरोत्तर अधिक प्रायश्चित्त वाले इस तरह प्रायश्चित्त क्रम से अतिचारों का चिन्तन करें और उस क्रम से ही मन में अवधारित करें। इस तरह समस्त दोषों का चिंतन कर 'नमो अरिहंताणं' कहकर कायोत्सर्ग पूर्ण करें। फिर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें। उसके बाद गुरु के समीप जाकर शास्त्रोक्त विधि पूर्वक भिक्षा में लगे दोषों का निवेदन करें।12 कायोत्सर्ग सम्बन्धी विशेष समझ- यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि यदि किसी मुनि ने आहार लाने के बाद किन्तु ापथिक प्रतिक्रमण करने से पूर्व लघु शंका का निवारण किया हो तो उसके निमित्त किये जाने वाले ईर्यापथिक प्रतिक्रमण के कायोत्सर्ग में भी भिक्षा सम्बन्धी दोषों का चिन्तन किया जा सकता है। चूंकि कोई भी शुभ क्रिया सदैव कर्मक्षय का हेतु बनती है ऐसा अर्हत वचन है। यहाँ यह भी स्पष्ट होना जरूरी है कि यदि किसी मुनि ने भिक्षाचर्या के दरम्यान अथवा भिक्षाचर्या के तुरन्त बाद लघूनीति न की हो तब भी ईर्यापथिक प्रतिक्रमण के कायोत्सर्ग में भिक्षा सम्बन्धी दोषों का चिन्तन किया जा सकता है क्योंकि यह साधुओं का विहित अनुष्ठान है। इसी प्रयोजन से ईर्यापथिक प्रतिक्रमण के समय भिक्षा सम्बन्धी दोषों को स्मृत करने का उल्लेख किया गया है।13
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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