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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...165 उप्पायणाय दोसा, सोलसमे मूलकम्मे य॥ (क) पिण्डनियुक्ति, 408-409 (ख) पिण्डविशुद्धिप्रकरण, 58-59 (ग) पंचवस्तुक, 754-755 (घ) पंचाशक प्रकरण, 13/18-19 (च) प्रवचनसारोद्धार, 566-567 147. पंचविध धादिकम्मेणुप्पादो धादि दोसो दु। मूलाचार, 447 148. पिण्डनियुक्ति, 411 149. (क) ज्ञाताधर्मकथा, 1/1/82 (ख) राजप्रश्नीय, 804 (ग) पिण्डनियुक्ति, 410 150. अनगार धर्मामृत, 5/20 151. पिण्डनियुक्ति, गा 428-429 की टीका, पृ. 126 152. मूलाचार में व्यंजन, अंग, स्वर आदि अष्टविध निमित्तों का उल्लेख है। मूलाचार, 449 153. अनगार धर्मामृत, 5/21 154. मनुस्मृति, 6/50 155. पिण्डनियुक्ति, गा. 435 की टीका, पृ. 128 156. निशीथभाष्य, 2689-92 चूर्णि, पृ. 18-19 157. पिण्डनियुक्ति, 437 158. मूलाचार, 450 159. (क) पिण्डनियुक्ति, 444 . (ख) जीतकल्पभाष्य, 1365 160. आठ चिकित्सा के नाम इस प्रकार हैं - 1. कौमार चिकित्सा 2. तनु चिकित्सा 3. रसायन चिकित्सा 4. विष चिकित्सा 5. भूत चिकित्सा 6. क्षारतंत्र चिकित्सा 7. शालाकिक चिकित्सा (शलाका द्वारा आँख आदि खोलना) 8. शल्य चिकित्सा। (क) मूलाचार, 452 (ख) स्थानांग सूत्र, 8/26
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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