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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...163 111. मूलाचार, 442 112. अनगार धर्मामृत, 5/6 113. पिण्डनियुक्ति, 357 की टीका, पृ. 108 114. (क) पिण्डनियुक्ति, 363 (ख) जीतकल्पभाष्य, 1270 (ग) निशीथभाष्य, 5949 में तिर्यक के स्थान पर उभयत: भेद का उल्लेख मिलता है। 115. जीतकल्पभाष्य, 1270 116. पिण्डविशुद्धिप्रकरण टीका, प. 45 117. पिण्डनियुक्ति, 364 118. पिण्डविशुद्धिप्रकरण टीका, प. 45 46 119. (क) पिण्डनियुक्ति, 361-62 (ख) दशवैकालिकसूत्र, 5/1/67-69 120. आच्छिद्यते-अनिच्छतोऽपि भृतकपुत्रादेः सकाशात् साधुदानाय परिगृह्यते यत् तदाच्छेद्यम्। (क) पिण्डनियुक्ति टीका, पृ. 35 अच्छिदिय अन्नेसिं, बलावि जं देंति सामिपहुतेणा तं अच्छेज्ज। (ख) पिण्डविशुद्धिप्रकरण, 50 (ग) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 412 121. मूलाचार, 443 122. पिण्डनियुक्ति, 371 123. वही, 374 124. वही, 373-74 125. वही, 374 126. दिण्णं तु जाणसु निसट्ठ। बृहत्कल्पभाष्य, 365, टीका पृ. 1016 127. स्थानांग टीका, पृ. 311 128. (क) जीतकल्पभाष्य, 1275 (ख) पिण्डविशुद्धिप्रकरण, 51
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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