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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...151 वैयावृत्य नहीं कर सकता, अशक्ति के कारण ईर्यापथ का शोधन नहीं कर सकता और प्रेक्षा-उपेक्षा आदि सतरह संयम स्थानों का अनुपालन भी नहीं कर सकता है। भूख के कारण प्राण शक्ति क्षीण हो जाती है जिसके फलस्वरूप भूखा साधु पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा भी नहीं कर सकता। इसलिए भोजन करना आवश्यक है।255 आहार न करने के प्रयोजन जैनागमों के निर्देशानुसार निम्न छह कारणों के उपस्थित होने पर साधुसाध्वी आहार न करें 1. आतंक- ज्वर आदि आकस्मिक बीमारी के उत्पन्न होने पर उसके निवारण हेतु। 2. उपसर्ग- देव, मनुष्य या तिर्यञ्चादि का उपसर्ग हो जाने पर। 3. ब्रह्मचर्य गुप्ति- ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए। कदाच किसी के द्वारा अपहरण कर लिया जाये तो आहार का त्याग कर देना चाहिए। अति स्निग्ध भोजन से वासना जगती है अत: वासना को शान्त करने के लिए आहार का त्याग करें। ___4. प्राणिदया- वर्षा एवं ओस आदि में सूक्ष्म जीवों के प्राणों की रक्षा के लिए। ___5. तप हेतु- तप साधना करने के लिए आहार का त्याग करें। 6. शरीर व्युत्सर्ग- शरीर का ममत्व कम करने के लिए अथवा संलेखना-अनशन आदि स्वीकार करने के लिए आहार का त्याग करें। उपर्युक्त छह कारणों से आहार करता हुआ तथा आहार न करता हुआ मुनि धर्म की आराधना करता है जबकि देह पुष्टि, रस गृद्धि आदि कारणों से आहार करने वाला मुनि संयम धर्म से विमुख हो जाता है।256 भिक्षाचर्या के अन्य दोष ____भिक्षाचर्या के जिन दोषों का वर्णन पिण्डनियुक्ति, पिण्डविशुद्धि, पंचवस्तुक आदि में उपलब्ध है उनसे अतिरिक्त भी यदि इस संदर्भ में खोज की जाए तो तत्सम्बन्धित अन्य अनेक दोष आगम एवं व्याख्या साहित्य में विकर्ण रूप से मिलते हैं। भगवतीसूत्र में भिक्षा सम्बन्धी निम्न चार दोषों का उल्लेख मिलता है
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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