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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...117 • पिण्डनियुक्ति की रचना के आसपास कोई ऐसी घटना घट गई होगी, जब निरन्तर भिक्षा ग्रहण करने वाले किसी साधु को हाथी ने चोट पहुँचाई हो। • अन्य प्राणियों की तुलना में हाथी की समझ अधिक परिपक्व होती है। मूलाचार के टीकाकार ने 'अणिसट्ठ' की संस्कृत छाया अनीशार्थ की है। अनगारधर्मामृत में यह निषिद्ध दोष के नाम से उल्लेखित है।136 चारित्रसार, मूलाचार आदि दिगम्बर ग्रंथों में इस दोष की व्याख्या कुछ अंतर के साथ मिलती है। 16. अध्यवपूरक दोष स्वयं के लिए खाना आदि पकाने की शुरुआत कर दी जाए फिर ध्यान आने पर साधु के लिए अधिक सामग्री डालकर पकाना अध्यवपूरक दोष है। इसे अध्यवतर दोष भी कहा जाता है। दिगम्बर परम्परा में अध्यवपूरक के स्थान पर 'अध्यधि' नामक दोष मिलता है। इसका दूसरा नाम साधिक भी है।137 यह दोष तीन प्रकार का कहा गया है (i) स्वगृह-यावदर्थिक मिश्र- अपने लिए पक रहे भोजन में बहुत से भिखारियों का आगमन सुनकर उन्हें देने के निमित्त पीछे से अधिक डालकर पकाना, स्वगृह यावदर्थिक (भिखारी) मिश्र दोष है। (ii) स्वगृह-पाखंडी मिश्र- अपने लिए बनाये जा रहे भोजन में पाखण्डियों का आगमन सुनकर पीछे से उनके लिए अधिक बनाना, स्वगृह पाखंडी मिश्र दोष है। (iii) स्वगृह-साधु मिश्र- अपने लिए पक रहे भोजन में साधु के निमित्त अधिक डालकर पकाया गया आहार देना, स्वगृह साधु मिश्र दोष है।138 __ परिणाम- अध्यवपूरक सम्बन्धी आहार लेने पर छ:काय की विराधना होती है। • अध्यवपूरक और मिश्रजात में मुख्य अन्तर यह है कि मिश्रजात में साधु के निमित्त चावल, फल, सब्जी आदि का परिमाण प्रारंभ में अधिक कर दिया जाता है जबकि अध्यवपूरक में इनका परिमाण मध्य में बढ़ाया जाता है।139 • यावदर्थिक मिश्र आहार में पीछे से जितना बढ़ाया हो, उतना भोजन अलग निकाल देने पर या भिक्षाचरों को बांट देने पर शेष भोजन साधुओं के लिए ग्राह्य हो सकता है।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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