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________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम... 115 (iii) स्तेन विषयक साधुओं के प्रति श्रद्धा रखने वाले चोर के द्वारा किसी से छीनकर कोई वस्तु दी जाए तो वह स्तेन विषयक आच्छेद्य दोष है।123 उक्त तीनों प्रकार का आच्छेद्य संबंधी आहार साधु के लिए वर्जित हैं। परिणाम आच्छेद्य आहार ग्रहण करने से अप्रीति और कलह की संभावना रहती है। जिससे छीनकर आहार आदि दिया जाता है, उसके अंतराय में भी मुनि निमित्तभूत बनते हैं तथा मुनि को अदत्तादान दोष भी लगता है । द्वेष के कारण एक या अनेक साधुओं के लिए भक्तपान का विच्छेद होता है। इसके अतिरिक्त उपाश्रय से निष्कासन तथा अन्य अनेक कष्ट भी प्राप्त हो सकते हैं। 124 अपवादतः यदि दरिद्र पुरुष या गृह मालिक के द्वारा भोजन पानी देने की अनुमति दे दी जाए तो मुनि आच्छेद्य आहार ले सकता है। 125 स्तेन विषयक आच्छेद्य का प्रसंग प्रायः सार्थवाह के साथ जाने वाले मुनियों के समक्ष उपस्थित होता है। सामान्यतया साधु को स्तेनाच्छेद्य ग्रहण नहीं करना चाहिए। - - 15. अनिसृष्ट दोष मालिक के द्वारा स्वेच्छा पूर्वक दिया गया दान निसृष्ट कहलाता है। 126 अनेक स्वामियों की अधिकृत वस्तु को उनकी अनुमति के बिना किसी एक से ग्रहण करना अनिसृष्ट दोष है। 127 अनिसृष्ट दोष दो तरह से लगता है - 1. साधारण अनिसृष्ट और 2. चोल्लक अनिसृष्ट (भोजन विषयक)। जीतकल्पभाष्य एवं पिण्डविशुद्धिप्रकरण में इसके तीन भेद किए गए हैं - 1. साधारण अनिसृष्ट 2. चोल्लक अनिसृष्ट 3 जड्ड हस्ती अनिसृष्ट | 128 पिण्डनियुक्ति में चोल्लक अनिसृष्ट के अन्तर्गत ही जड्ड हस्ती अनिसृष्ट का समावेश कर दिया गया है। 129 (i) साधारण अनिसृष्ट- साधारण अनिसृष्ट में अनेक स्वामी के आश्रित मोदक, क्षीर, कोल्हू, विवाह, दुकान तथा गृह आदि वस्तुओं का समावेश होता है अर्थात कोल्हू आदि स्थानों पर होने वाले पदार्थ के अनेक स्वामी हो सकते हैं। उन सभी स्वामियों की अनुमति के बिना किसी एक स्वामी के द्वारा दिया गया आहार आदि लेना, साधारण अनिसृष्ट दोष है। 130 परिणाम- साधारण अनिसृष्ट सम्बन्धी आहार लेने पर गृहस्थ साधु को ‘पच्छाकड’-पुनः गृहस्थ वेश पहनाकर देश से निष्कासित भी कर सकता है । 131 (ii) चोल्लक अनिसृष्ट- खेत में काम करने वाले कर्मचारियों या सैनिकों
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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