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________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...77 9. गंडाक कुल - (नापिक कुल) जो गाँव में उद्घोषणा का काम करते हैं। 10. कोट्टाग कुल - लकड़ी आदि को घड़ने का काम करने वाले सुथार आदि। 11. ग्राम रक्षक कुल - गाँव के रक्षकों का कुल (जैसे चौकीदार, पंच, सरपंच आदि)। 12. बुक्क शालीय कुल - तन्तुवाय, वस्त्र निर्माता का कुल। इसी तरह के अन्य अजुगुप्सित एवं अगर्हित कुलों में भी निर्ग्रन्थ मनि आहार आदि के लिए प्रवेश कर सकता है और वहाँ प्रासुक एवं शुद्ध आहार मिले तो ग्रहण कर सकता है। उक्त कुलों के माध्यम से तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था का भी भलीभाँति परिचय हो जाता है और इसके आधार पर कहा जा सकता है कि पूर्वकालीन समाज व्यवस्था में विद्या, कला, शिल्प आदि को अत्यन्त सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। __यहाँ जुगुप्सित एवं घृणित कुलों तथा घरों का अर्थ भी स्पष्ट कर देना आवश्यक है। जहाँ खुले आम मांस-मछली आदि पकाये जाते हों, वध किया जाता हो, हड्डियाँ या चमड़ी आदि इधर-उधर पड़े हों, जिनके यहाँ बर्तनों में मांस पकता हो अथवा जिनके बर्तन, आंगन, वस्त्र आदि अस्वच्छ हों ऐसे घर किसी भी जाति के होने पर भी जुगुप्सित और घृणित कहलाते हैं। जहाँ खुले आम व्यभिचार होता हो, वेश्यालय हो, मदिरालय हो, कसाई खाना हो, जो हिंसादि पाप कार्यों में रत हों वे गर्हित निन्द्य गृह कहलाते हैं और उन्हें भिक्षा के लिए त्याज्य कहा गया है। अतिरिक्त आहार-ग्रहण सम्बन्धी निर्देश ___शास्त्र वर्णित विधि के अनुसार मुनि उतना ही आहार ग्रहण करे, जितना उसे स्वयं के लिए उपयोगी या अपेक्षित हो। बिना कारण प्रमाण से अधिक आहार लेने पर उसका परिष्ठापन, आज्ञा भंग आदि दोष लगते हैं। इसके उपरान्त भी अतिरिक्त आहार ग्रहण के कुछ निम्न कारण बतलाये गये हैं। जिन स्थितियों में अतिरिक्त आहार का ग्रहण हो जाता है • जहाँ स्थापना कुल नहीं हो, वहाँ प्रत्येक संघाटक, आचार्य, ग्लान और अतिथि साधुओं के लिए आहार लाया गया हो।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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