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________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...71 उत्सव स्थानों में भिक्षार्थ जाने का निषेध - सामान्यतया जहाँ महोत्सव के लिए एकत्रित हो रहे हों अथवा पितृ पिण्ड या मृतक के निमित्त भोजन बन रहा हो अथवा इन्द्र महोत्सव, स्कन्द महोत्सव, रूद्र महोत्सव, भूत महोत्सव, यक्ष महोत्सव इसी प्रकार नाग, स्तूप, चैत्य, वृक्ष, गिरि, गुफा, कूप, तालाब और सरोवर सम्बन्धी महोत्सव हो रहा हो तथा इन महोत्सवों पर जहाँ श्रमण, ब्राह्मण, कृपण और याचकों को आहार दिया जा रहा हो ऐसे स्थानों पर जैन मनि को भिक्षार्थ नहीं जाना चाहिए, किन्तु महोत्सव सम्बन्धी वह भोजन शाक्यादि अन्य भिक्षुकों को दिया जा चुका हो तो उसे ग्रहण किया जा सकता है।38 महाभोज में आहारार्थ जाने का निषेध - संखडी शब्द का सामान्य अर्थ है सामूहिक-भोज। “संखड्यन्ते विराध्यन्ते प्राणिनो यत्र सा संखडि:” जहाँ भोजन तैयार करने में जीवों की हिंसा की जाती है वह जीमन संखडी कहलाता है। महाभोज या जीमनवार आदि में अन्न को विविध प्रकार से संस्कारित किया जाता है इसलिए भी इसे संस्कृति (संखडी) कहते हैं। वर्तमान में इसे महाभोज कहते हैं। राजस्थान में इसे जीमनवार भी कहते हैं। ___सामान्यतया जहाँ बड़े जीमनवार हों, अनेक लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हों, पंक्ति में बैठकर खाते हों, कई लोगों का आवागमन होता हो ऐसे स्थानों पर जैन साधु-साध्वियों को भिक्षार्थ नहीं जाना चाहिए क्योंकि इससे अन्तराय, अप्रीति, अपमान, हिंसा आदि दोष लगते हैं। दोष- आचारांगसूत्र में संखडी गमन के निम्न दोष बतलाये गये हैं • सामान्यता मुनि का भोजन सादा, सात्विक और निर्दोष होना चाहिए, जबकि विशिष्ट भोजों में बनाये जाने वाले पदार्थ गरिष्ठ, स्वादिष्ट और मादक होते हैं। गरिष्ठ और स्वादिष्ट आहार करने से रस गृद्धि बढ़ती है। रस गृद्धि से आसक्ति बढ़ती है और आसक्ति से विषाद (दुःख) बढ़ता है। संखडी में भिक्षाटन निषेध का एक कारण यह भी है कि रस गृद्धि वश अत्यधिक आहार लाने का लोभ बढ़ता है, अतिमात्रा में स्वादिष्ट भोजन करने से स्वास्थ्य हानि, आलस्य वृद्धि और स्वाध्याय का क्रम खण्डित होता है। फलतः ध्यान, स्वाध्याय, प्रतिलेखना आदि आवश्यक क्रियाओं का परिपालन भी अच्छी तरह से नहीं हो पाता है।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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