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________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...69 हो, मस्तक थोड़ा झुका हो, मार्ग में कीचड़ और जल न हों। भिक्षाटन इस प्रकार करें कि खाते-पीते पक्षी भयभीत न हो जाएं और वे अपना आहार छोड़कर भाग न जाएं। तुष, गोबर, राख, भूसा, घास के ढेर, फल पत्ते आदि से बचते हुए चलें।35 उपर्युक्त वर्णन से ज्ञात होता है कि श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों परम्पराओं में भिक्षाचर्या के नियम लगभग समान हैं। यहाँ भिक्षाचर्या सम्बन्धी नियमों का अभिप्राय शुद्ध एषणा पूर्वक आहार प्राप्ति है अत: भिक्षाचर्या के समय मनि पाँचों इन्द्रियों के विषयों से अपना ध्यान हटाकर केवल एषणा में ही रत रहें, नहीं तो अहिंसादि धर्म खण्डित होता है। भिक्षाचर्या के निषिद्ध-अनिषिद्ध स्थान ___जैन मुनि चारित्र धर्म का सम्यक् निर्वाह करने के लिए निर्दोष एवं प्रासुक आहार ग्रहण करता है। अत: विशुद्ध आहार की प्राप्ति हेतु निम्नोक्त कुल आदि के स्थान वर्जित कहे गये हैं जहाँ मुनि को भिक्षाटन नहीं करना चाहिए। आचारांग सूत्र के अनुसार वे निषिद्ध स्थान इस प्रकार हैं कुल स्थानों में जाने का निषेध- जिन कुलों में पुण्योपार्जन हेतु श्रमण, ब्राह्मण आदि सभी प्रकार के संन्यासियों एवं अन्य भिक्षाचरों को नित्य पिण्ड (प्रतिदिन दिया जाने वाला आहार) नित्य अग्र पिण्ड (जो आहार पक रहा हो, उसमें से कुछ भाग पहले निकाल कर रखा हुआ आहार), नित्य पक्व आहार का आधा भाग और नित्य पक्व आहार का चौथा भाग दान में दिया जाता हो तथा जिन कुलों में प्रतिदिन शाक्यादि भिक्षाचरों का प्रवेश होता हो, ऐसे स्थानों पर साधु-साध्वी को आहार पानी के लिए नहीं जाना चाहिए। दोष- उक्त कुलों में भिक्षार्थ गमन का निषेध इसलिए किया गया है कि यदि साधु उन घरों में प्रवेश करे या उन भवनों के समीप से होकर निकले तो गृहस्वामी उस साधु को भिक्षा ग्रहण करने की प्रार्थना कर सकता है। कदाच साधु उस प्रार्थना को ठुकरा दे या उसके द्वारा निर्मित आहार की निन्दा करे तो उस गृहस्थ के मन में दुःख या क्षोभ उत्पन्न हो सकता है। उसकी दान देने की भावना को ठेस पहुँच सकती है। अत: ऐसे घरों में या उनके समीपवर्ती घरों में भिक्षार्थ नहीं जाना चाहिए। यहाँ नित्य पिण्ड और अग्र पिण्ड लेने का निषेध इसलिए किया गया है
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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