SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 32... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन बारह प्रतिमा 'प्रतिमा' शब्द का पारम्परिक अर्थ है- अभिग्रह विशेष धारण करना। एकरात्रि आदि के लिए प्रतिमा की भाँति कायोत्सर्ग आदि साधनाओं में स्थिर रहना, भिक्षु प्रतिमा है अथवा विशिष्ट श्रुत आदि से सम्पन्न मुनि द्वारा किया जाने वाला साधना का विशिष्टतम प्रयोग भिक्षु प्रतिमा कहलाता है। यह साधना शरीरबल एवं मनोबल की अपेक्षा एक महीने से लेकर बारह महीने तक की जाती है। अतः प्रतिमाएँ बारह कही गई हैं। दशाश्रुतस्कन्ध के अनुसार द्वादश प्रतिमाओं का सामान्य वर्णन इस प्रकार है 1. मासिकी भिक्षु प्रतिमा 2. द्विमासिकी भिक्षुप्रतिमा 3. त्रैमासिकी भिक्षु प्रतिमा 4. चातुर्मासिकी भिक्षु प्रतिमा 5. पंचमासिकी भिक्षु प्रतिमा 6. छहमासिकी भिक्षु प्रतिमा 7. सप्तमासिकी भिक्षु प्रतिमा 8. प्रथमसप्तरात्रं दिवा भिक्षु प्रतिमा 9. द्वितीय सप्तरात्रिं दिवा भिक्षु प्रतिमा 10. तृतीय सप्तरात्रिं दिवा भिक्षु प्रतिमा 11. अहोरात्रिकी भिक्षु प्रतिमा 12 एकरात्रिकी भिक्षु प्रतिमा। 120 पहली प्रतिमा - एक मास की प्रतिमा धारण करने वाला भिक्षु सभी प्रकार के उपसर्गों को समभावपूर्वक सहन करता है । इसी के साथ निम्न आचारों का दृढ़ता से पालन करता है - दत्ति- प्रथम प्रतिमाधारी साधु भोजन और पानी की एक-एक दत्ति ग्रहण करते हैं। दाता द्वारा एक बार में एक धार से जितना दिया जाये, वह एक दत्ति कहलाता है। भिक्षाचर्या - पहली प्रतिमा के धारक साधु अज्ञात कुलों से भिक्षा ग्रहण करते हैं, खाने के लिए लेपरहित भोजन लेते हैं । जहाँ एक व्यक्ति भोजन कर रहा हो वहीं से भिक्षा ग्रहण करते हैं, किन्तु द्वयधिक व्यक्ति भोजन कर रहे हों वहाँ से भिक्षा नहीं ले सकते हैं। गर्भवती, बालवत्सा और स्तनपान कराती हुई स्त्री से भिक्षा नहीं ले सकते हैं । दाता एक पैर देहली के बाहर और एक पैर देहली के भीतर करके भिक्षा दे तो ले सकते हैं। गोचरकाल - भिक्षा वेला से पूर्व, मध्य या भिक्षावेला के अतिक्रान्त होने पर इनमें से किसी एक काल में आहार करते हैं । गोचरा - गोचरचर्या के छह प्रकारों- पेटा, अर्धपेटा, गोमूत्रिका,
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy