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________________ श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष...25 प्रकारों से शोधन करना चाहिए।91 4. आदान-निक्षेपण समिति-आदान-ग्रहण करना, निक्षेपण-रखना अर्थात आसन, संस्तारक, वस्त्र, पात्र, पाट, डंडा आदि उपकरणों को उपयोगपूर्वक देखकर एवं रजोहरण आदि से पूँजकर लेना तथा उपयोगपर्वक देखी और पूंजी गई भूमि पर रखना आदान-निक्षेपण समिति है।92 . 5. उच्चार-प्रस्रवण-खेल-सिंघाण-जल्ल परिष्ठापनिका समितिउच्चार-बड़ीनीति, प्रस्रवण-लघुनीति, खेल-श्लेष्म, सिंघाण-नाक का मैल, जल-मल तथा दोषयुक्त आहार, जीर्ण उपधि, मृत शरीर आदि विसर्जन योग्य वस्तुओं का स्थण्डिल भूमि में उपयोगपूर्वक परित्याग करना उत्सर्ग समिति है।93 तुलना- समिति, जैन मुनियों का प्राथमिक आचार है। यदि इस विषय में ऐतिहासिक दृष्टि से विचार किया जाये तो इसका सर्वप्रथम उल्लेख स्थानांगसूत्र में प्राप्त होता है।94 इसके अनन्तर यह वर्णन समवायांगसूत्र में दृष्टिगत होता है।95 उत्तराध्ययनसत्र में समिति और गप्ति दोनों का अत्यन्त विस्तृत विवेचन उपलब्ध है। इस प्रकार जैन आगमों में समिति का सम्यक् स्वरूप निर्दिष्ट है।96 ___ जहाँ तक जैन टीका साहित्य का सवाल है वहाँ दशवैकालिक चूर्णि, उत्तराध्ययन टीका, आवश्यक टीका में भी इसका वर्णन है। जहाँ तक परवर्ती साहित्य का प्रश्न है वहाँ अष्टप्रवचनमाता की चर्चा प्रवचनसारोद्धार, तत्त्वार्थसूत्र38, नवतत्त्वप्रकरण9 आदि में भी प्राप्त होती है। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो यह विवरण उपलब्ध ग्रन्थों में लगभग समान है। बारह भावना भावना का सामान्य अर्थ है- पुनः पुनः अभ्यास करना। आचार्य हरिभद्रसूरि के अनुसार जो आत्मा को भावित करती है वह भावना अथवा ध्यान के योग्य चेतना का निर्माण करने वाली अभ्यास क्रिया का नाम भावना है।100 जैन परम्परा में गृहस्थ और श्रमण दोनों के लिए प्रतिदिन शुभ चिन्तन करने का प्रावधान है उसे ही अनुप्रेक्षा या भावना कहा गया है। जैन दर्शन में भावनाओं का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए बताया गया है कि दान, शील, तप और भावना के भेद से धर्म चार प्रकार का है, किन्तु इन चतुर्विध धर्मों में भावना प्रधान है। संसार में जितने भी सुकृत्य हैं उनमें भावना की ही प्रमुखता है,
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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