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________________ जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन...xlix द्वितीय अध्याय में जैन साधु-साध्वी के लिए उत्सर्गत: पालन करने योग्य दस कल्प, दस सामाचारी, बाईस परीषह, बावन अनाचीर्ण आदि सामान्य नियमों का सहेतुक वर्णन किया गया है। - तृतीय अध्याय में स्थान आदि की याचना से सम्बन्धित विधि-नियमों की भेद-प्रभेद सहित चर्चा की गई है। चतुर्थ अध्याय में साम्भोगिक विधि वर्णित की है। इसमें मुख्य रूप से यह बताया गया है कि मुनि जीवन में भी समान सामाचारी का पालन करने वाले साधुओं में ही परस्पर आहार-वस्त्र-उपधि आदि का आदान-प्रदान हो सकता है। अन्य सामाचारी (पृथक समुदाय) के साथ आहार आदि करना निषिद्ध है। यहाँ भी स्व-सामाचारी का अनुसरण करने वाले साध्वी समुदाय के साथ वन्दनवांचना आदि का ही व्यवहार किया जा सकता है। पाँचवें अध्याय में मुनि धर्म की आराधना में उपयोगी उपधि एवं उपकरणों का स्वरूप बतलाया गया है जिससे उन साधनों का यथावत उपयोग किया जा सके। छठे अध्याय में प्रतिलेखना एवं प्रमार्जना का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए वस्त्र, पात्र, रजोहरण आदि उपकरण तथा वसति आदि का प्रतिलेखन कब, कितनी बार, किस विधि पूर्वक किया जाना चाहिए? इस सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन किया गया है। सातवें अध्याय में मुनि स्वयं के लिए निर्दोष वस्त्रों का ग्रहण किस विधि पूर्वक, कितनी संख्या एवं कितने परिमाण में करें? इत्यादि बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है। ___ आठवें अध्याय में पात्र के प्रकार, पात्र की गवेषणा हेतु क्षेत्रगमन सीमा, पात्रग्रहण विधि, पात्र रखने की उपयोगिता आदि पात्र सम्बन्धी विधि-नियमों का निरूपण किया गया है। ___ नौवां अध्याय वसति विधि से सम्बन्धित है। पंच महाव्रतधारी साधुसाध्वियों के लिए कौनसी वसति (स्थान) वर्जित मानी गयी है? निषिद्ध वसति में रहने के क्या दोष हैं? वसति के कितने प्रकार हैं? शुद्ध वसति ब्रह्मचर्य
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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