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________________ 398...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन 25. जो जहियं सो तत्तो, नियत्तह पयाहिणं न कायव्वं । उट्ठाणाई दोसा, विराधना बालवुड्डा ।। (क) आवश्यकनियुक्ति, 1273 की 58 की टीका (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5539 26. (क) आवश्यकनियुक्ति, 1273 की 59वीं गाथा (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5538 27. आवश्यकनियुक्ति, 1273 की 59 की टीका 28. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 228 29. खमणे य असज्झाए, राइणिय महानिणाय नियगा वा। सेसेसु नत्थि खमणं, नेव असज्झाइयं होइ । __ (क) आवश्यकनियुक्ति, 1273 की 60 की टीका (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5550 30. (क) आवश्यकनियुक्ति, 1273 की 61-62 की टीका (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5555-5556 31. आनन्द स्वाध्याय माला, पृ. 165-166 32. व्यवहारभाष्य, 3281-3301 33. व्यवहारसूत्र, 7/22 की टीका 34. बृहत्कल्पभाष्य, 5551-5552 35. बृहत्कल्पसूत्र, 4/29 36. व्यवहारसूत्र, 7/20 37. आवश्यकनियुक्ति, गा. 1272-73 38. बृहत्कल्पभाष्य, 1506-1508, 5507-5599 की टीका 39. व्यवहारभाष्य, 3259-3306 40. सामाचारीसंग्रह, पृ. 88-89 41. सुबोधासमाचारी, पृ. 34-35 42. सामाचारीप्रकरण (प्राचीन सामाचारी), पृ. 30-31 43. विधिमार्गप्रपा- सानुवाद, पृ. 224-229 44. आचारदिनकर, पृ. 138-139 45. प्रवचनसारोद्धार, 106 / 783-789
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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