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________________ 392...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन मनन किया जाए तो इस संस्कार की विस्तृत चर्चा आवश्यकनियुक्ति, हारिभद्रीय टीका एवं बृहत्कल्पभाष्य में की गई है। इनमें सामान्यतया 17 द्वारों के माध्यम से इस विधि को सुस्पष्ट किया गया है। यद्यपि बृहत्कल्पभाष्य में द्वारों के क्रम से इसका उल्लेख नहीं किया गया है तथापि आवश्यक नियुक्ति एवं बृहत्कल्पभाष्य की विषयवस्तु लगभग समान है। ___ जब इस विषयक मध्यकालवर्ती कृतियों का अवलोकन करते हैं तो उनमें समरूपता और विभिन्नता दोनों के दर्शन होते हैं। परवर्ती साहित्य से यह भी निर्णीत हो जाता है कि मध्यकाल के ग्रन्थ आवश्यक नियुक्ति एवं हारिभद्रीय टीका से पूर्णत: प्रभावित है। समाचारीसंग्रह, विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर आदि में तीन स्थंडिल प्रेक्षा, तीन वस्त्रों द्वारा शव का आच्छादन, नक्षत्रानुसार पुतला निर्माण, निवर्त्तन, प्रदक्षिणा, उत्थान, खमण, अस्वाध्याय, अवलोकन, शीर्षनिर्गता आदि लगभग सभी पक्षों पर विचार किया गया है। यद्यपि कुछ तथ्य निम्न रूप से दृष्टव्य हैं पूर्ववर्ती ग्रन्थों की तुलना में विधिमार्गप्रपा आदि में यह विशेष रूप से कहा गया है कि चार कांधिया अर्थात चार मुनि अर्थी उठाने से पूर्व छाने की राख का तिलक करें तथा कुंवारी कन्या के द्वारा काते गए सूत के तीन तारवाले तंतु से निर्मित उत्तरासंग के द्वारा अपनी रक्षा करें। यहाँ उत्तरासंग को बायीं भुजा के अधोभाग से प्रारम्भ कर दायें कंधे के ऊपर (जनेऊ की भांति) विपरीत क्रम से धारण करें। उल्टा वस्त्र पहनने पर व्यंतरादि के उपद्रव नहीं होते हैं। रजोहरण एवं मुखवस्त्रिका भी विपरीत क्रम से ग्रहण करें अर्थात दसियों को आगे की तरफ और दंडी को पीछे की तरफ रखें। रजोहरण बाएं हाथ की अपेक्षा दाएँ हाथ में एवं मुखवस्त्रिका भी दाएं हाथ की अपेक्षा बाएं हाथ में पकड़ें। विधिमार्गप्रपा में अग्निसंस्कार की विधि पृथक रूप से दर्शाते हुए कहा गया है कि अग्निसंस्कार के पश्चात मृत श्रमण को जो भोजन रुचिकर था। उसे एक पात्र में रखकर श्मशान भूमि में ही छोड़ दें। फिर वहाँ क्षण भर के लिए कौआ, कबूतर, चिड़िया आदि का चिंतन करें। उस समय श्वेतवर्ण के पक्षी आएं तो देवगति, कृष्णवर्ण के पक्षी आएं तो अशुभ गति और मध्यमवर्ण के जीव आएं तो मध्यमगति हुई, ऐसा माना जाता
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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