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________________ अध्याय- 14 स्थंडिल गमन सम्बन्धी विधि-नियम पाँच समितियाँ साधुचर्या की निर्दोष परिपालना का अभिन्न अंग है। इस आचार विधि के माध्यम से उच्चार - प्रस्रवण परिष्ठापन नामक पाँचवीं समिति का विधियुक्त पालन किया जाता है। समितियाँ पंच महाव्रत का रक्षण एवं सर्वविरतिधर मुनियों का माता के समान पोषण करती है। इसलिए स्थंडिल एक शास्त्रोक्त चर्या है तथा इसका सम्बन्ध शरीर की आवश्यक क्रियाओं से है । स्थंडिल के विभिन्न अर्थ 'थंडिल' इस प्राकृत शब्द का संस्कृत रूपान्तरण 'स्थंडिल' है। स्थंडिल का शास्त्रीय अर्थ है - शुद्ध भूमि, जन्तु रहित प्रदेश, निर्जीवस्थान आदि। ' उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार जो भूमि जीव-जन्तुओं के उपद्रवों से एवं चींटीचूहें आदि बिलों से रहित हो, किसी मालिक के अधीनस्थ न हो, उपाश्रय से न्यूनतम सौ हाथ दूर हो, एकान्त में हो वह स्थंडिल भूमि कहलाती है। इसे मलोत्सर्ग भूमि, उत्सर्ग भूमि एवं परिष्ठापन भूमि भी कहते हैं। स्थंडिल भूमि के प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र के मतानुसार स्थंडिल भूमि निम्न दस लक्षणों से युक्त होनी चाहिए - 2 1. अनापात असंलोक अनापात-जहाँ स्वपक्ष और परपक्ष का आगमन न हो, असंलोक-जहाँ वृक्षादि से ढूँके होने के कारण किसी की दृष्टि न पड़ती हो अर्थात जहाँ लोगों का आवागमन न हो और दूर से भी कोई दिखता न हो वह अनापात - असंलोक नामक स्थंडिल भूमि कहलाती है। 2. औपघातिक— जहाँ मल विसर्जन करने से लोक निन्दा, लोक उपहास एवं जीव वध आदि की सम्भावनाएँ न हों वह अनौपघातिक स्थंडिल भूमि है। -
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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