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________________ 338... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन जाए तो इस युग के भौतिक विकास को देखकर कई लोग इसे मात्र रूढ़िवादिता तथा अप्रासंगिक मानते हैं। उनके अनुसार वर्तमान युग तेज गति से चलने वाले वाहनों का युग है, फिर कष्टों को सहन करते हुए पाद भ्रमण क्यों ? वाहनों का प्रयोग कर अधिक से अधिक क्षेत्रों में धर्म का प्रचार-प्रसार क्यों नहीं किया जा सकता है? इस धीमी कछुए की गति से समाज का उद्धार कैसे होगा? इस तर्क को देने वाले उपभोक्तावादी लोग साधु जीवन का मूल उद्देश्य ही नहीं समझते और इसी कारण वे बिना आधार के तर्क प्रस्तुत करते हैं। पंचमहाव्रतधारी मुनि के लिए यह सब त्याज्य है । वे तो अपनी साधना करते हुए जितना संभव होता है उतना लोक-कल्याण करते हैं । मात्र लौकिक उपकार ही मुनि जीवन का लक्ष्य नहीं है। यदि यात्राकाल में विशाल अथवा अल्प जल युक्त जलमार्ग को पार करना हो तो विशेष कारण उपस्थित होने पर मुनि नाव का प्रयोग अपवाद रूप में कर सकते हैं। बृहत्कल्पसूत्र (4/32) के अनुसार गंगा, यमुना, सरयू, माही आदि महानदियों को मुनि एक बार पार कर सकते हैं। अल्प जल युक्त नदियों को दोतीन बार पार करने का आपवादिक विधान है। आचारांगसूत्र में नाव कैसी हो, मुनि कहाँ बैठें आदि कई नियमों की चर्चा है। इसी प्रकार वर्तमान में शारीरिक व्याधि Accident, operation आदि स्थितियों में आपवादिक रूप से वाहन आदि का प्रयोग किया जाता हैं। इसमें गुर्वाज्ञा पूर्वक कार्य करना चाहिए। वर्तमान में बढ़ रही दुर्घटनाओं, लूटमार, अपहरण, शीलभंग आदि परिस्थितियों में विहार करना एक चिंतनीय विषय है? इस पर श्रावक वर्ग को ध्यान केंद्रित करना अत्यावश्यक है। सन्दर्भ-सूची 1. विविध पगारेहिं रयं, हरती जम्हा विहारो उ । व्यवहारभाष्य, 995 2. चरिया चरित्तमेव मुलूत्तरगुण समुदायो । दशवैकालिक जिनदासचूर्णि, पृ. 370 3. विहारोऽनियतवासो दर्शनादिनिर्मलीकरणं निमित्तं सर्वदेशविचरणम्। मूलाचार, 9/771 की टीका 4. भगवती आराधना, 155 5. अणिययवासो वा जतो ण णिच्चमेगत्थ वसियव्वं किन्तु विहरितव्वं । दशवैकालिक चूर्णि, चूलिका, 2/5
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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