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________________ विहारचर्या सम्बन्धी विधि-नियम...335 भाष्यकार ने इसके कुछ अपवाद भी बतलाये हैं जैसे यदि साधु भयभीत होने वाला न हो एवं उपर्युक्त दोषों की सम्भावना न हों तो सहवर्ती साधुओं को सूचित करके सावधानी रखते हुए अकेला भी जाया जा सकता है। दो साधुओं में एक बीमार है अथवा तीन साधुओं में एक बीमार है और एक को उसकी सेवा में बैठना आवश्यक है तो उसे सूचित करके अकेला भी जा सकता है। इसके अतिरिक्त अभिग्रह, प्रतिमा आदि धारण करने वाले मुनि भी कठोर साधना के निमित्त रात्रि में एकाकी बाहर जा सकते हैं। साध्वी के लिए तो दिन में भी अकेले जाने का विधान नहीं है। वे रात्रिकाल में तीन या चार साध्वी के साथ बाहर जा सकती हैं। इसका कारण केवल भयभीत होने की प्रकृति ही समझना चाहिए। साध्वी को किसी प्रकार के अपवाद में भी रात्रि में अकेले जाने की आज्ञा नहीं है। अत: कोई विशेष परिस्थिति हो तो श्राविका या श्रावक को साथ में लेकर जायें, किन्तु अकेले न जायें।56 निष्पत्ति- उक्त विवेचन का सार यही है कि साधु हो या साध्वी उन्हें रात्रि में उपाश्रय से बाहर नहीं जाना चाहिए। रात्रि में विहारादि भी नहीं करना चाहिए। यदि शरीर सम्बन्धी मल-मूत्रादि के त्याग का प्रश्न हो तो साधु दो या तीन मनियों के साथ और साध्वी तीन या चार साध्वियों के साथ ही बाहर जायें यही उत्सर्ग मार्ग है। अन्य किसी विशेष परिस्थिति में साधु-साध्वी उच्चार-मात्रक में मल विसर्जन कर प्रात:काल भी परठ सकते हैं और उसका यथायोग्य प्रायश्चित्त ग्रहण कर दोष मुक्त बन सकते हैं। वर्तमान परिस्थितियों के सन्दर्भ में उक्त नियमों के परिपालन की संभावनाएं न्यूनतर होती जा रही हैं। अब निर्दोष स्थंडिल भूमि मिल पाना मुश्किल हो गया है। शहरों में तो लगभग संडास, बाथरूम का ही उपयोग करना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में विचरण करने पर शास्त्रीय नियमों का पालन किया जा सकता है और करना भी चाहिए। यही उत्कृष्ट मार्ग है। वर्षाकाल में विहार का निषेध क्यों? जैन भिक्ष को हेमन्त और ग्रीष्म इन ऋतबद्ध आठ मासों में ही विहार करने की आज्ञा है। वर्षाऋतु में विहार करने का सर्वथा निषेध किया गया है। इसके कुछ प्रयोजन निम्न हैं-57 1. वर्षाकाल में पानी बरसने से भूमि सर्वत्रहरित तृणांकुरादि से व्याप्त हो
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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