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________________ विहारचर्या सम्बन्धी विधि-नियम...333 1. यदि किसी साधु के माता-पिता दीक्षा के लिए उद्यत हों तो उन्हें दीक्षा देने के लिए। 2. यदि माता-पिता पुत्र वियोग के शोक से विह्वल हों तो उन्हें सान्त्वना देने के लिए। 3. भक्तपान प्रत्याख्यान (समाधिमरण) का इच्छुक साधु अपने गुरु या ____ गीतार्थ के पास आलोचना ग्रहण करने के लिए। 4. रोगी साधु के वैयावृत्य के लिए। 5. वादियों द्वारा शास्त्रार्थ के लिए आह्वान करने पर शासन-प्रभावना के लिए। 6. आचार्य का अपहरण कर लिए जाने पर उनको मुक्त कराने के लिए तथा इसी प्रकार के अन्य कारण उपस्थित होने पर उक्त प्रकार से स्वीकृति लेकर जा-आ सकते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि विरुद्धादि राज्यों में बार-बार नहीं जाना चाहिए। अपवादत: जाना पड़े तो बार-बार नहीं जाना चाहिए, क्योंकि आवश्यक कार्य से एक-दो बार जाना तो शक्य हो सकता है, किन्तु बार-बार गमन करना आपत्तिजनक होता है। वर्तमान सन्दर्भ में कहें तो जैसे भारत में विचरण करने वाले साधुसाध्वियों को पाकिस्तान में नहीं जाना चाहिए, किन्तु नेपाल, भूटान आदि भिन्न देशों में अनुमतिपूर्वक आ-जा सकते हैं। रात्रि में विहार या गमनागमन निषेध के कारण बृहत्कल्पसूत्र में इस विषय का सोद्देश्य वर्णन है कि साधु-साध्वी को रात्रि में विहार क्यों नहीं करना चाहिए। इसके निम्न प्रयोजन बताये गये हैं-53 1. रात्रि में गमन करने से मार्ग पर चलने वाले जीव दृष्टिगोचर नहीं होते __अत: ईर्यासमिति का पालन नहीं हो सकता है और उसका पालन न होने से जीवों की विराधना होती है। 2. इसके अतिरिक्त पैरों में कांटे आदि लगने से, ठोकर खाकर गिरने से या गड्ढे आदि में गिरने से आत्म विराधना भी होती है।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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