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________________ 328...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन न बैठें। गलीचे, दरी आदि पर न बैठे, गृहस्थ के घर न बैठे। जिस मार्ग पर बैलगाड़ी, गज सवारी, रथ, गाय, घोड़े, ऊँट, मनुष्य आदि का सदा आवागमन रहता हो, सूर्यादि का पर्याप्त प्रकाश गिरता हो तथा हलादि चलाये जा चुके हों, उस मार्ग में पद यात्रा करें।40 एकाकी विचरण के दोष ___तीर्थंकर उपदिष्ट आगम ग्रन्थों में जिनकल्पी मुनि को छोड़कर शेष साधुओं के लिए एकाकी विचरण करने का निषेध किया गया है। गीतार्थ (बहुश्रुत) मुनि के लिए भी एकाकी विचरण निषिद्ध बताया गया है। भाष्यकार संघदासगणि कहते हैं कि यदि गीतार्थ मुनि भी अकेला विहार करता है तो वह चारित्र से च्युत होकर पार्श्वस्थ (शिथिलाचारी) बन जाता है, सद्बुद्धि से विकल हो जाता है, ज्ञान-दर्शन-चारित्र- इन तीन स्थानों का त्याग कर देता है क्योंकि 1. षड्काय विराधना से चारित्र की 2. प्रचुर आहार के भक्षण से ग्लान युक्त होकर आत्मा की 3. अयतना पूर्वक मल-मूत्रादि का विसर्जन करने से प्रवचन की अवहेलना होती है।41 यहाँ जानने योग्य है कि गीतार्थ जैसा श्रुतज्ञानी मुनि भी यदि अकेला विहार करे तो चारित्र मार्ग से च्युत होकर अनेक दोषों से घिर सकता है तब सामान्य मुनि अकेला विचरण कैसे कर सकता है? यह सर्वथा सामाचारी विरुद्ध है। अत: किसी भी मुनि को निष्प्रयोजन अकेला नहीं रहना चाहिए। यदि अगीतार्थ मुनि अकेला विहार करता है तो निम्न दोषों की संभावनाएं बनती हैं___1. वह नये ज्ञान को ग्रहण नहीं कर सकता है, क्योंकि उसे ज्ञान देने वाला कोई नहीं होता 2. सूत्र और अर्थ विषयक शंका होने पर उसके पास पृच्छा का अवकाश नहीं होता 3. सूत्र और अर्थ का परावर्तन करते समय अशुद्धि के लिए सचेत करने वाला कोई नहीं होता 4. अन्य मुनियों को परावर्तन करते हुए न देखकर स्वयं का उत्साह भी मन्द हो जाता है 5. एकाकी अगीतार्थ मुनि को चरक आदि अन्य तीर्थक सन्यासी अपनी कयक्तियों के द्वारा भ्रमित कर सकते हैं 6. एकाकी होने के कारण वह साधर्मिक मुनियों के प्रति वात्सल्य तथा उनका उपबंहण, स्थिरीकरण आदि नहीं कर सकता 7. उसके मन में जिन वचनादि के प्रति शंका हो जाये तो उसका समुचित समाधान न मिल पाने के कारण दर्शनाचार से भ्रष्ट हो जाता है 8. एकाकी होने के कारण स्त्री-राग संबंधी दोष
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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