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________________ 320...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन योग्य स्थान के सम्बन्ध में हुआ है।21 इसी प्रकार अन्य आगम ग्रन्थों में भी 'विहार' शब्द का उल्लेख है किन्तु विहार किस क्रम या किस विधिपूर्वक करना चाहिए, तत्सम्बन्धी किसी प्रकार का निर्देश प्राचीन आगमों में प्राप्त नहीं होता है। ___ जब छेद सूत्रों का अवलोकन करते हैं तो बृहत्कल्पसूत्र22 में विहार के निषिद्ध क्षेत्र, रात्रिकाल में विहार निषेध के कारण आदि का समुचित वर्णन तो प्राप्त हो जाता है किन्तु विहार सम्बन्धी नियमों के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा गया है। ___यदि इस संदर्भ में आगमिक व्याख्याओं का आलोड़न करें तो उनमें निश्चित रूप से विहार का विस्तृत स्वरूप उपलब्ध होता है। बृहत्कल्पभाष्य में विहार विधि, एकाकी विहार के दोष, विहार के कर्तव्य, विहार के लाभ, विहार के निषिद्ध स्थान आदि का सम्यक् प्रकार से निरूपण है।23 व्यवहारभाष्य में विहार के प्रकार, अपवादत: आचार्यादि से अलग विहार करने वाले मुनियों के लक्षण, विहार में गीतार्थ मुनि के कृत्य आदि का वर्णन है।24 निशीथभाष्य में नौ कल्पी विहारादि की चर्चा की गई है।25 ओघनियुक्तिकार ने भी इस विषय पर सम्यक् प्रकाश डाला है।26 यदि इस संदर्भ में परवर्ती साहित्य का अवलोकन किया जाए तो पंचवस्तुक27 और प्रवचनसारोद्धार28 जैसे प्रसिद्ध ग्रन्थ मुख्य रूप से प्राप्त होते हैं। आचार्य हरिभद्रसूरि ने विहार के प्रयोजन, विहार न करने के अपवाद, नित्यवासी मुनियों के आचार आदि का वर्णन किया है। आचार्य नेमिचन्द्रसरि ने अप्रतिबद्ध विहार आदि की चर्चा की है। ____ निष्कर्ष रूप में विहारचर्या तीर्थंकरोपदिष्ट एवं तीर्थंकर आचरित विधि है। इसकी मूल्यवत्ता आज भी यथावत रही हुई है। वर्तमान में हजारों साधु-साध्वी पद यात्रा करते हुए आत्म कल्याण एवं लोक कल्याण के प्रति कटिबद्ध है। विहारयोग्य मुनि के लक्षण जैनाचार्यों ने विहार करने योग्य मुनि के लिए भी कुछ योग्यताएँ आवश्यक मानी हैं। जो शान्त हो, जिसके हाथ-पैर चलने में समर्थ हों, सभी देशों की स्थिति का ज्ञाता हो, सभी भाषाओं में निपुण हो, रस, स्पर्श एवं स्थान में लुब्ध न हो, कलाओं का जानकार हो, विद्या पारंगत हो, संयम पालन में दृढ़
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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