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________________ विहारचर्या सम्बन्धी विधि-नियम...313 और उपाध्याय नियमत: गीतार्थ होते हैं। अत: ये स्वतंत्र विहार के अधिकारी कहे गये हैं। इनके अतिरिक्त प्रवर्तक, स्थविर, गणावच्छेदक आदि पदस्थ मुनि या सामान्य साधु गीतार्थ हो भी सकते हैं और नहीं भी, इसलिए इन्हें अकारण स्वतंत्र विहार करने की अनुमति नहीं है। गीतार्थ भी तीन प्रकार के वर्णित हैं(i) जघन्य गीतार्थ- आचार प्रकल्प अर्थात निशीथसूत्र का ज्ञाता मुनि। (ii) मध्यम गीतार्थ- दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प, व्यवहार आदि सूत्रों का ज्ञाता मुनि। (iii) उत्कृष्ट गीतार्थ- चौदह पूर्व का ज्ञाता मुनि। ये तीनों प्रकार के गीतार्थ गुरु की अनुमति से स्वतंत्र विचरण कर सकते हैं। वर्तमान काल की अपेक्षा से देखा जाए तो अभी उत्कृष्ट गीतार्थ का साक्षात अभाव है। क्योंकि इस समय किसी भी मुनि को चौदह पूर्व का ज्ञान नहीं है।' पादविहारी मुनि के प्रकार जैन शास्त्रों में पदयात्रा करने वाले मनि तीन प्रकार के बताये गये हैं___ 1. द्रोता- एक गांव से दूसरे गांव में द्रुत गति से गमन करने की योग्यता रखने वाले मुनि। ये दो प्रकार के होते हैं- (i) कारणिक- अशिव दुर्भिक्ष, राजकलह आदि कारणों के समुपस्थित होने पर गमन करने वाले मुनि अथवा वस्त्र, पात्र, लेप आदि की प्राप्ति के लिए, गच्छ का उपकार करने के लिए तथा आचार्य आदि के आदेश से विशेष कारण उत्पन्न होने पर गमन करने वाले मुनि और (ii) निष्कारणिक- बिना किसी कारण के मात्र तीर्थंकरों की जन्मादि भूमियाँ एवं अतिशय क्षेत्री जिनालयों के दर्शन हेतु गमन करने वाले मनि।। 2. आहिण्डक- सतत भ्रमण करने वाला मुनि। इस कोटि के मुनि भी दो प्रकार के कहे गये हैं- (i) उपदेश आहिण्डक- शास्त्रों का सटीक अध्ययन कर, विभिन्न देशों के आचार, व्यवहार, भाषा आदि का ज्ञान करने के लिए देशाटन (अलग-अलग या दूर देश में विचरण) करने वाला मुनि और (ii) अनुपदेश आहिण्डक- कुतूहलवश देव-दर्शन हेतु भ्रमण करने वाला मुनि। 3. विहारी- नवकल्प के अनुसार विहार करने वाला मुनि। नवकल्प विहारी साधु दो प्रकार के होते हैं- (i) गच्छगत- गच्छ के साथ रहते हुए एवं शास्त्रोक्त नियम का पालन करते हुए वर्षावास के सिवाय एक मास के पश्चात
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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