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________________ 276...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन शय्यातर के प्रकार शय्यातर व्यक्ति दो प्रकार के होते हैं - 1. वसति का मूल मालिक और 2. मालिक द्वारा नियुक्त अधिकारी। ये दोनों भी दो-दो प्रकार के वर्णित हैं1. एक और 2. अनेक। स्वामी एक भी हो सकता है और अनेक भी हो सकते हैं। इसी प्रकार स्वामी द्वारा नियुक्त अधिकारी एक भी हो सकता है और अनेक भी हो सकते हैं। पूर्वोक्त चारों पदों के मिलने से चतुर्भंगी बनती है 1. एक स्वामी और एक स्वामी तुल्य 2. एक स्वामी और अनेक स्वामी तुल्य 3. अनेक स्वामी और एक स्वामी तुल्य 4. अनेक स्वामी और अनेक स्वामी तुल्य इन विकल्पों में से दूसरा और तीसरा विकल्प शुद्ध तथा पहला और चौथा विकल्प अशुद्ध है।2 अपवाद- यद्यपि चौथा भंग मुनि के लिए अकल्प्य है किन्तु प्रवचनसारोद्धार के टीकाकार के मतानुसार यह नियम वैकल्पिक है, जैसे किसी स्थान पर अनेक स्वामियों की वसति हो और गृहस्थ साधु-सामाचारी का ज्ञाता होने से मुनि को निवेदन करे कि 'भगवन्! आप इस वसति को ग्रहण करिये तथा हम में से किसी एक को शय्यातर बनाइये।' ऐसी स्थिति में साधु किसी एक को शय्यातर मानकर वसति ग्रहण कर सकता है और शेष घरों से भिक्षा ले सकता है अथवा यदि साधुओं की संख्या अधिक हो फिर भी उस ग्राम में शय्यातरों को छोड़कर भी आहार-पानी की उपलब्धता की दृष्टि से सभी का निर्वाह सरलता से हो सकता हो तथा सभी श्रावकों ने वसति दान किया हो तो सभी वसति के मालिकों को शय्यातर रूप में स्वीकार करें। यदि भोजन-पानी की दृष्टि से सभी का सरलता से निर्वाह न होता हो और सभी ने वसति न दी हो तो एक शय्यातर माना जा सकता है। दो शय्यातर हो तो एक दिन के अन्तर से शय्यातर बदल कर एक के घर से भिक्षा ग्रहण करें, तीन शय्यातर हों तो प्रत्येक के यहाँ तीसरे दिन, चार शय्यातर हों तो प्रत्येक के यहाँ चौथे दिन भिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। इस प्रकार संख्या वृद्धि के क्रम से समझना चाहिए। वसति दाता शय्यातर-अशय्यातर कब और कैसे? यह उल्लेखनीय है कि वसतिदाता शय्यातर कब बनता है? इस प्रश्न के जवाब में पन्द्रह मत प्राप्त होते हैं
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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