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________________ 224... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन उपसंहार नैतिक एवं सामाजिक जीवन जीने के लिए वस्त्र धारण एक प्राचीनतम सभ्यता है। किन्तु आत्म साधनारत मुनि को संयम धर्म की अभिवृद्धि हेतु कौनसे वस्त्र किस प्रकार ग्रहण एवं धारण करने चाहिए, इसका सम्यक स्वरूप पूर्व पृष्ठों पर पठनीय है। वस्तुतः जैन भिक्षु के वस्त्र सम्बन्धी जो भी नियमोपनियम हैं, वे अत्यन्त विचारणीय हैं। जैनागमों में आचारांगसूत्र एवं बृहत्कल्पसूत्र इन ग्रन्थों में प्रस्तुत विषय को स्पष्टता के साथ कहा गया है। दिगम्बर साहित्य के अनुसार मुनि को निर्वस्त्र रहने का विधान है। उनके मतानुसार वस्त्रधारी पुरुष मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता, फिर चाहे वह तीर्थंकर ही क्यों न हो।17 इसी आधार पर इस परम्परा में स्त्री-मुक्ति का निषेध किया गया है। किन्तु भिक्षुणी के लिए निर्वस्त्र रहना असम्भव है। अत: उसके लिए एक अखण्ड वस्त्र धारण करने का निर्देश दिया गया है। तदनुसार दिगम्बर भिक्षुणियाँ आज भी एक वस्त्र ही धारण करती हैं, शेष सभी नियम भिक्षु-भिक्षुणी के प्रायः समान हैं। 18 वैदिक परम्परा में वस्त्रधारी एवं निर्वस्त्र दोनों तरह के संन्यासियों का चित्रण प्राप्त होता है। कुछ मतानुयायी कहते हैं कि संन्यासी को निर्वस्त्र रहना चाहिए। आपस्तम्ब के अनुसार संन्यासी को केवल अपना गुप्तांग ढंकने के लिए वस्त्र धारण करना चाहिए। इसमें वस्त्र धारण के सम्बन्ध में यह विधान बतलाया गया है कि उसे अन्य लोगों द्वारा छोड़ा हुआ जीर्ण-शीर्ण, किन्तु स्वच्छ वस्त्र पहनना चाहिए।19 वसिष्ठ के मत से उसे अपने शरीर को वस्त्र के टुकड़े से ढकना चाहिए अथवा मृग चर्म अथवा गायों के लिए काटी गयी घास से आवृत्त करना चाहिए | 20 बौधायन के अनुसार उसका वस्त्र काषाय रंग का होना चाहिए। 21 इस प्रकार हम पाते हैं कि जैन एवं हिन्दू दोनों परम्पराओं में निर्वस्त्र और वस्त्र धारण की अवधारणा समान है । यद्यपि हिन्दू धर्म में निर्वस्त्रधारी की परम्परा विलुप्त हो चुकी है। जहाँ तक बौद्ध संघ का प्रश्न है, वहाँ इस परम्परा में भी भिक्षु एवं भिक्षुणियों के लिए वस्त्र सम्बन्धी कुछ प्रावधान हैं। जब हम पातिमोक्ख, महावग्ग आदि बौद्ध साहित्य का अध्ययन करते हैं तो इस विषयक निम्न तथ्य ज्ञात होते हैं
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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