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________________ वस्त्र ग्रहण सम्बन्धी विधि-नियम...219 वस्त्र रखना कल्प्य है। आचारांगसूत्र में यह कहा गया है कि जो भिक्षु तरुण, स्वस्थ एवं समर्थ हो, उसे इनमें से एक ही वस्त्र रखना चाहिए, अनेक नहीं। सामान्य भिक्षु दो वस्त्र रख सकते हैं। जो श्रमण तीन वस्त्र रखते हों, उन्हें तीन वस्त्रों में से तीन संघाटिका, चोलपट्टक, आसन, झोली, गरणा, मुखवस्त्रिका, रजोहरण की दण्डी लपेटने के लिए ओघेरिया आदि बनाना चाहिए। इस प्रकार वह अधिक से अधिक बहत्तर हाथ वस्त्र रख सकता है। श्रमणियों के लिए चार संघाटिका रखने का नियम है। एक संघाटिका दो हाथ की, दो संघाटिका तीन-तीन हाथ की और एक संघाटिका चार हाथ की हो। दो हाथ परिमाण वाली संघाटिका उपाश्रय में पहनने के लिए, तीन हाथ की संघाटिकाओं में से एक भिक्षाटन के समय एवं एक शौच के समय ओढ़ने के लिए तथा चार हाथ की संघाटिका धर्मसभा आदि के समय धारण करने के उद्देश्य से कही गई है। आगमिक टीकाओं में वस्त्रों की अन्य सूची भी मिलती है। बृहत्कल्पसूत्र में वस्त्र संख्या के सम्बन्ध में यह भी निर्दिष्ट है कि जो दीक्षित हो रहा हो उस मुमुक्षु को रजोहरण, गोच्छग (प्रमार्जनिका), पात्र और तीन अखण्ड वस्त्र (एक हाथ चौड़ा एवं चौबीस हाथ लम्बा) जिनसे सभी आवश्यक उपकरण बनाये जा सकें, लेकर प्रव्रजित होना चाहिए। इसके पश्चात जब उसकी बड़ी दीक्षा हो या किसी व्रत विशेष में दूषण लग गया हो या अशुभ कर्मोदय के कारण साधना मार्ग से भटक गया हो किन्तु कुछ समय के पश्चात पुन: प्रव्रज्या लेने का इच्छुक हो और उसके पास पुराने वस्त्र आदि भी हों तो नये वस्त्र लेने की आवश्यकता नहीं है। नवदीक्षित श्रमणी के लिए चार वस्त्रों के साथ प्रव्रजित होने का निर्देश है। इस प्रकार हम पाते हैं कि आगम विधि के अभिमत से साधु को तीन एवं साध्वी को चार वस्त्र रखना ही कल्पता है। वस्त्र के प्रकार वस्त्र तीन प्रकार के कहे गये हैं- 1. यथाकृत 2. अल्पपरिकर्मी और 3. बहुपरिकर्मी। 1. यथाकृत- गृहस्थ के द्वारा लाये गये वस्त्र के लिए फाड़ना, सीलना, सांधना आदि किसी प्रकार का परिकर्म न करना पड़े और जिस रूप में दिया गया है उस रूप में उसका उपयोग कर सके, वह यथाकृत वस्त्र कहलाता है।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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