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________________ 200...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन 3. कुधर्म 4. ज्ञान विराधना 5. दर्शन विराधना 6. चारित्र विराधना 7. मनोदंड 8. वचनदंड 9. कायदण्ड, ये नौ तत्त्व मुख्य रूप से अनाचरणीय हैं। इसलिए इन नौ बोलों का स्मरण करते हुए नौ बार खंखेरने की विधि की जाती है। यहाँ इस प्रश्न का समाधान भी निर्विवादतः हो जाता है कि जिस प्रकार शरीर के अमुक-अमुक अंगों का स्पर्श करने पर तत्सम्बन्धी कामवासना, हर्ष, शोक, रोष, अभिमान आदि के भाव उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार मुखवस्त्रिका द्वारा उन अंगों का स्पर्श करने पर वे दोष शान्त हो जाते हैं। ज्ञातव्य है कि वस्त्र द्वारा शरीर स्पर्श की क्रिया प्रस्फोटन (खंखेरने) के समय ही की जाती है, आस्फोटन के समय वस्त्र को शरीर से ऊपर रखा जाता है। इसलिए दोष परिहार की बात कही गई है। यह तथ्य सम्मोहन (Hypnotis) आदि पद्धतियों से भी सिद्ध होता है। इतर परम्परा में भी धार्मिक अनुष्ठानों में शरीर स्पर्शादि की विधि की जाती है, जैसे हिन्दू परम्परा में गायत्री मन्त्र बोलते समय दर्भ नामक घास द्वारा अथवा श्रुति (आगम) से अंग का स्पर्श करते हैं। मुसलमान नमाज पढ़ते समय उनउन अंगों का भिन्न-भिन्न प्रकार से स्पर्श करते हैं। __ जैन परम्परा में वज्रपंजर, जिनपंजर, नवग्रह आदि कुछ स्तोत्रों का स्मरण करते समय अंगस्पर्शन के साथ भिन्न-भिन्न तरह की मुद्राएँ की जाती हैं और उनके सुपरिणाम भी देखे जाते हैं। वस्त्र प्रतिलेखना क्यों की जाए? कंबली, सूती चद्दर, संस्तारक, उत्तरपट्ट, पात्रस्थापन आदि वस्त्रों की प्रतिलेखना के प्रयोजन मुखवस्त्रिका के समान जानने चाहिए, क्योंकि सभी की प्रतिलेखना 25-25 बोलपूर्वक मुखवस्त्रिका की तरह की जाती है। विशेष इतना है कि प्रतिलेखना के समय मन एकाग्र होने से वस्त्र की क्षणिकता एवं अस्थिरता को देखकर अनित्य भावना का चिन्तन किया जा सकता है। ___ रजोहरण आदि प्रतिलेखना के आवश्यक कारण क्यों? रजोहरण की प्रतिलेखना हिंसा जनित संस्कारों को शमित करने एवं 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की भावना को विकसित करने के उद्देश्य से की जाती है। वस्त्र एवं पात्र द्विविध उपकरणों की प्रतिलेखना अहिंसा व्रत के परिपोषण हेतु करते हैं। वसति (उपाश्रय) की प्रतिलेखना और प्रमार्जना सूक्ष्म जीवों के रक्षण, चारित्र धर्म के
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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