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________________ 180...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन वसति आदि की प्रतिलेखना स्थापनाचार्य (आचार्य की प्रतिकृति) के समक्ष की जाती हैं। स्थापनाचार्य को वस्त्र आदि में वेष्टित कर रखा जाता है। आचार्य के सम्मानार्थ स्थापनाचार्य के ऊपर और नीचे मुखवस्त्रिकाएँ रखी जाती हैं तथा श्रेष्ठ वस्त्र द्वारा उन्हें आवेष्टित किया जाता है। स्थापनाचार्य प्रतिलेखना की विधि निम्न प्रकार है सर्वप्रथम स्थापनाचार्य रखने के लिए कंबल खण्ड (ऊनी वस्त्र) की 25 बोल से प्रतिलेखना करें।49 फिर कंबल खण्ड को समेटकर उस पर स्थापनाचार्य रखें। उसके बाद स्थापनाचार्य के ऊपर रखी गई दो मुखवस्त्रिकाओं की 25-25 बोल से प्रतिलेखना करें। फिर स्थापनाचार्य को प्रतिलेखित मुखवस्त्रिकाओं पर रखें। उसके बाद स्थापनाचार्य के नीचे रखी गई तीसरी मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें।50 तत्पश्चात स्थापनाचार्य को आवेष्टित करने में उपयोगी ऊनी वस्त्र खण्ड एवं सूती वस्त्र खण्ड की 25-25 बोल से प्रतिलेखना करें। उसके पश्चात दोनों वस्त्रों को मिलाकर कंबल खण्ड के ऊपर फैला दें। फिर गादी के रूप में एक मुखवस्त्रिका रखें। उसके ऊपर स्थापनाचार्य को स्थापित कर शेष मुखवस्त्रिकाओं को स्थापनाचार्य के ऊपर रखें। फिर स्थापनाचार्य को वेष्टित कर उच्च आसन पर विराजमान करें।51 तुलना जैन परम्परा में स्थापनाचार्य की अवधारणा कब से शुरू हुई, इस सम्बन्ध में निश्चित कह पाना असंभव है, किन्तु इतना अवश्य है कि श्वेताम्बर परम्परा में आचार्य हरिभद्रसूरि के काल तक इसकी कोई चर्चा नहीं मिलती है। संभवत: आवश्यक विधि-क्रियाओं के समय इसका उपयोग किया जाता होगा, किन्तु टीका साहित्य में तद्विषयक उल्लेख प्राप्त नहीं होते हैं। ___मूलत: आचार्य की अनुपस्थिति में उनकी अनुमति प्राप्त करने हेतु स्थापनाचार्य रखते हैं। देशकालगत स्थितियों के आधार पर कालान्तर में स्थापनाचार्य का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि आचार्य की प्रत्यक्ष उपस्थिति में भी स्थापनाचार्य रखे जाते हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि जैसे निश्रारत या कनिष्ठ मुनियों के लिए आचार्य आलम्बन रूप होते हैं, वैसे ही स्वयं आचार्य के लिए स्थापनाचार्य आलम्बन भूत होने चाहिए। दूसरे, साध्वियाँ अपनी मर्यादानुसार प्रत्येक क्रिया आचार्य के समक्ष नहीं कर सकतीं तथा मुनियों
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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