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________________ प्रतिलेखना एवं प्रमार्जना सम्बन्धी विधि-नियम...171 करें। उसके बाद पात्र केसरिका (पूंजणी) के द्वारा झोली के चारों किनारों को एकत्रित कर उसका प्रमार्जन करें। उसके बाद वर्णित विधि के अनुसार पाँचों इन्द्रियों का उपयोग रखते हुए पात्रों की प्रतिलेखना करें। फिर पूँजणी से पात्र के किनारों की प्रमार्जना करें, क्योंकि सबसे पहले पात्र को किनारे से पकड़ना होता है। तदनन्तर पूंजणी के द्वारा पात्र के बाह्य भाग और आभ्यन्तर भाग की तीनतीन बार प्रमार्जना करें। उसके बाद पात्र को बायें हाथ में पकड़कर भूमि से चार अंगुल ऊपर रखते हुए उसके अन्दर के तलिये का निरीक्षण करें। फिर उस तलिये का तीन बार प्रमार्जन करें और फिर तीन बार प्रतिलेखना करें। पुनः पात्र को हाथ में लेकर दूसरी बार भी अन्दर के तलिये की तीन बार प्रमार्जना करें। फिर पात्र मुख को उल्टा करके एक ही बार में बाहरी तलिये का प्रमार्जन एवं प्रतिलेखन करें।29 ___ यहाँ कुछ आचार्य कहते हैं कि पात्र की प्रतिलेखना करते समय पहले एक बार पात्र के बाह्य भाग की प्रमार्जना करें। फिर एक बार पात्र के आभ्यन्तर भाग की प्रमार्जना करें। इसी क्रम से दूसरी और तीसरी बार भी करें। उसके पश्चात पात्र को उल्टा करके पुनः पात्र के तलिये की प्रमार्जना करें। इस प्रकार क्रमश: तीन बार प्रमार्जन एवं तीन बार प्रस्फोटन करें। ____ कुछ आचार्यों के अभिमतानुसार पात्र का तीन बार ही प्रस्फोटन करना चाहिए।30 तुलना ___पात्र प्रतिलेखना कब, किस विधि पूर्वक की जानी चाहिए? इस सम्बन्ध में ऐतिहासिक दृष्टिकोण से विचार करें तो आगमिक उत्तराध्ययनसूत्र में एवं व्याख्या मूलक ओघनियुक्ति ग्रन्थ में यह विवेचन प्राप्त होता है। उत्तराध्ययनसूत्र में तो पात्र प्रतिलेखना के समय का ही निर्देश है, किन्तु ओघनियुक्ति में पात्र प्रतिलेखना काल, पात्र प्रतिलेखना विधि, पात्र प्रतिलेखना क्यों आदि विषयों का भी वर्णन है। इसके अनन्तर यह विवेचन पंचवस्तुक एवं यतिदिनचर्या में उपलब्ध होता है। तदनन्तर साधुविधिप्रकाश में इसका परिवर्तित स्वरूप वर्णित है। यदि तुलनात्मक दृष्टि से विचार किया जाए तो ओघनियुक्ति आदि में यह वर्णन सम्यक रूप से उल्लिखित है। पात्रोपकरण की प्रतिलेखना कितने बोल
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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