SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 166...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन उत्तराध्ययनसूत्र में चादर के एक पार्श्व भाग की अपेक्षा से छह ‘पुरिमा' कहे गये हैं तथा एक पार्श्व के एक पट की (लम्बाई पाँच हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की) अपेक्षा से 'नवखोडा' कहे गये हैं।17 तुलना __यदि मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन सम्बन्धी बोलों का ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन किया जाए तो हमें आगम ग्रन्थों एवं टीका ग्रन्थों में यह वर्णन लगभग नहीं मिलता है। यह विवरण सर्वप्रथम प्रवचनसारोद्धार एवं गुरुवंदनभाष्य में प्राप्त होता है।18 इससे अनुमान होता है कि बोलों की परम्परा 12-13वीं शती के बाद अस्तित्व में आई है तथा उपर्युक्त ग्रन्थों में बोलों की संख्या एवं नाम को लेकर पूर्ण साम्य है। शरीर प्रतिलेखना- मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना शरीर प्रतिलेखना सहित होती है। प्रवचनसारोद्धार एवं गुरुवंदनभाष्य19 के अनुसार शरीर प्रतिलेखना सम्बन्धी बोल विधि इस प्रकार है 1. बायां हाथ- उकडु आसन में बैठकर दायें हाथ की अंगुलियों के बीच मुखवस्त्रिका को (वधूटक पूर्वक) पकड़ें। फिर बायें हाथ का प्रतिलेखन- हास्य कहते हुए बीच में, रति कहते हुए दायीं तरफ एवं अरति परिहरूं कहते हुए बायीं तरफ करें। 2. दायां हाथ- पुन: पूर्ववत आसन में बैठे हुए बायें हाथ की अंगुलियों के बीच मुखवस्त्रिका को पकड़ें। फिर दायें हाथ का प्रतिलेखन- भय कहते हुए मध्य में, शोक कहते हुए दायीं तरफ एवं दुगुंछा परिहरूं कहते हुए बायीं तरफ करें। ___3. मस्तक- पुन: पूर्ववत मुद्रा में मुखवस्त्रिका के दोनों किनारों को दोनों हाथों से पकड़कर ललाट की प्रतिलेखना- कृष्ण लेश्या कहते हुए बीच में, नील लेश्या कहते हुए दायीं तरफ एवं कापोत लेश्या परिहरूं कहते हुए बायीं तरफ करें। ____4. मुख- पुन: पूर्ववत मुद्रा में मुखवस्त्रिका के दोनों किनारों को दोनों हाथों में पकड़कर मुख की प्रतिलेखना- ऋद्धि गारव कहते हुए मध्य में, रस गारव कहते हुए दायीं तरफ एवं साता गारव परिहरूं कहते हुए बायीं तरफ करें।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy