SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिलेखना एवं प्रमार्जना सम्बन्धी विधि-नियम...163 मुनि जीवन के लगभग सभी क्रियानुष्ठान मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना के साथ सम्पन्न होते हैं। गृहस्थ की धार्मिक क्रियाएँ जैसे- सामायिकव्रत, पौषधव्रत, उपधानतप आदि क्रियानुष्ठानों में भी मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन का प्राधान्य है। मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन की प्रचलित विधि मुख्य रूप से श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में मान्य है। दिगम्बर परम्परा में मुखवस्त्रिका नाम का उपकरण ही नहीं है। स्थानकवासी एवं तेरापन्थी परम्परा में मुखवस्त्रिका का उपयोग तो सर्वाधिक होता है, किन्तु बोल पूर्वक प्रतिलेखन की परिपाटी नहीं है मात्र प्रतिलेखन होता है। ___ श्वेताम्बर परम्परानुसार जब मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना की जाती है उस समय शरीर प्रतिलेखना भी अनिवार्य रूप से होती है अर्थात मुखवस्त्रिका एवं शरीर दोनों की प्रतिलेखना क्रमशः युगपद रूप से होती है। अत: वैधानिक ग्रन्थों में मुखवस्त्रिका के पच्चीस एवं शरीर प्रतिलेखना के पच्चीस ऐसे पचास बोल एक साथ उल्लिखित हैं। मुखवस्त्रिका के सिवाय शेष वस्त्रोपकरण की प्रतिलेखना प्रभात एवं सन्ध्या में दो बार की जानी चाहिए। वस्त्र प्रतिलेखना विधि- मुखवस्त्रिका, संस्तारक, रजोहरण, कंबली आदि उपकरण पृथक-पृथक बोलपूर्वक प्रतिलेखित किए जाते हैं। परम्परागत सामाचारी विधि निम्न है मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन- सर्वप्रथम उकडु आसन में बैठकर (दोनों हाथों को दोनों पांवों के बीच में रखकर) मुखवस्त्रिका खोलें। फिर दोनों हाथों से उसके दोनों किनारों को पकड़कर मुखवस्त्रिका के सम्मुख दृष्टि रखें, फिर मन में बोलें1. सूत्र, अर्थ, सांचो सद्दडं 1- 'सूत्र' शब्द बोलते समय मुखवस्त्रिका के एक तरफ का सम्यक निरीक्षण करें। _ 'अर्थ, सांचो सद्दहुं'- यह शब्द बोलते समय मुखवस्त्रिका को बायें हाथ के ऊपर रखें, फिर बायें हाथ से पकड़े हुए छोर (किनारे) को दाहिने हाथ में पकड़ें तथा दाहिने हाथ से पकड़े हुए छोर को बायें हाथ में पकड़ें। इस तरह मुखवस्त्रिका के दूसरे भाग को सामने लाकर उस भाग की प्रतिलेखना करें। यह क्रिया करते हुए सूत्र-अर्थमय उभय रूप तत्त्व को सत्य समझें एवं उसकी प्रतीति कर उस पर श्रद्धा रखें। • पुरिम'2-फिर मुखवस्त्रिका के बायें हाथ की तरफ का भाग तीन बार झाडे-खंखेरें, इस समय (2 से 4) सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय,
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy