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________________ 148...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन धारण करने की नियम संहिता में अचेल, एकशाटक, दो वस्त्रधारी और तीन वस्त्रधारी ऐसे चार प्रकार के निर्ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है। जहाँ तक श्रमणियों का प्रश्न है उन्हें एक-दो हाथ विस्तारवाली, दो-तीन हाथ विस्तारवाली एवं एक-चार हाथ विस्तारवाली ऐसी चार संघाटी (चद्दर) रखने का निर्देश है।75 इसके अनन्तर आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में वस्त्र आदि उपकरणों से सम्बन्धित विधि-निषेधों का विस्तृत विवेचन है, किन्तु उनमें कहीं भी वस्त्र, पात्र आदि उपकरणों में संख्या वृद्धि का कोई निर्देश नहीं है, अपितु इसमें यही कहा गया है कि जो भिक्षु तरुण, युवा, बलवान, निरोगी एवं स्थिर संहननवाला हो वह एक वस्त्र ही रखे, दूसरा नहीं। यही वस्त्रधारी की सामग्री है।76 तत्पश्चात उत्तराध्ययनसूत्र में मुखवस्त्रिका, गोच्छग, पात्रकम्बल और वस्त्र इन तीन उपकरणों का वर्णन है। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि साधुसाध्वी जो वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादपोंछन रखते हैं, वे केवल अहिंसा के परिपालनार्थ या लोक लज्जा के निवारणार्थ रखते हैं, अत: उसे भगवान ने परिग्रह नहीं कहा है।78 इसके सिवाय वस्त्र-पात्र की संख्या वृद्धि का कोई निर्देश नहीं है। हमें उपकरणों की संख्या वृद्धि के सन्दर्भ सर्वप्रथम बृहत्कल्प, व्यवहारसूत्र, निशीथ आदि छेद सूत्रों में ही मिलते हैं, किन्तु उनमें परवर्तीकाल में विकसित एवं प्रचलित 14 उपकरणों का उल्लेख एक साथ नहीं मिलता है। व्यवहारसूत्र में उल्लेख आता है कि वयोवृद्ध स्थविर मुनि को दण्ड, पात्र, छाता, मात्रक, लाठी, पीठफलक, वस्त्र, चिलिमिलिका, चर्म, चर्मकोष और चर्म परिच्छेदक, ऐसे 11 प्रकार के उपकरण अविराधित स्थान में रखकर आनाजाना कल्पता है।79 इन उपकरणों में दण्ड, मात्रक, पात्र एवं चिलिमिलिका का प्रचलन तो श्वेताम्बर परम्परा में आज भी देखा जाता है, किन्तु छाता एवं चर्म जैसे उपकरणों का प्रचलन श्वेताम्बर परम्परा में कभी रहा हो, ऐसा ज्ञात नहीं होता। डॉ. सागरमल जैन के अनुसार सम्भवतः ये उपकरण प्राचीन काल में चैत्यवासियों के द्वारा रखे गये होंगे अथवा पार्खापत्यों की परम्परा में रहे होंगे, जो बाद में मान्य नहीं रहे।80 श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार मात्रक रखने की व्यवस्था सर्वप्रथम आर्यरक्षित के समय में हुई। ऐसी स्थिति में यह संदेह होना स्वाभाविक है कि
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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