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________________ उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन...129 4. पटल (पडला)- पडला लम्बाई में ढाई हाथ और चौड़ाई में छत्तीस अंगुल (तीन वेंत) परिमाण वाला होना चाहिए अथवा पात्र और शरीर की ऊंचाई-मोटाई के अनुसार छोटे-बड़े होने चाहिए। आचार्य हरिभद्रसूरि के मतानुसार पडला केले के गर्भ जैसा कोमल, चिकना और वजन में हल्का होना चाहिए। पडला को मिलाने के बाद उसमें से सूर्य न दिखें वैसा मोटा होना चाहिए। काल की अपेक्षा से पडला की संख्या तीन, चार और पाँच कही गई है। वह संख्या भी जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट के भेद से तीन प्रकार की है। इस सम्बन्ध में निम्न तालिका द्रष्टव्य है ग्रीष्म हेमन्त वर्षा उत्कृष्ट- मजबूत, गाढे एवं स्निग्ध 3 4 5 मध्यम- कुछ जीर्ण 4 5 6 जघन्य- जीर्ण 5 6 7 इसका स्पष्टार्थ है कि ग्रीष्म ऋतु में अधिकतम तीन, मध्यम रूप से चार एवं न्यूनतम पाँच पडले रखने चाहिए। इसमें भी यदि जीर्ण वस्त्र हो तो पाँच, कुछ जीर्ण हो तो चार और मोटा हो तो तीन पडले रखने चाहिए। इसी तरह का विधान हेमन्त एवं वर्षा ऋतु में भी समझना चाहिए। भिन्न-भिन्न ऋतु में पटल की संख्या पृथक-पृथक क्यों? ग्रीष्मऋतु- जैनाचार्यों ने पटल की भिन्न-भिन्न संख्या का कारण बताते हुए कहा है कि ग्रीष्मकाल रूक्ष होता है, अत: उस समय सचित्त रज आदि शीघ्र अचित्त बन जाती है अतएव ग्रीष्मकाल में उत्कृष्ट से तीन, मध्यम से चार और जघन्य से पाँच पडले आवश्यक माने गये हैं। ग्रीष्मऋतु में पडला की संख्या सबसे कम स्वीकारी गयी है। हेमन्तऋतु- यह काल स्निग्ध होने से सचित्त रज बहत जल्दी अचित्त रूप में परिणत नहीं होती अत: उसके आहार तक पहुँचने की पूर्ण संभावना रहती है। इसी कारण हेमन्त ऋतु में उत्कृष्ट चार, मध्यम पाँच और जघन्य छह पडले होने चाहिए। __वर्षाऋतु- वर्षाकाल अत्यन्त स्निग्ध होता है। इस समय सचित्त रज आदि बहुत समय के पश्चात अचित्त रूप में परिणत होती हैं इसीलिए वर्षाऋतु में उत्कृष्ट पाँच, मध्यम छह और जघन्य सात पडले रखने का विधान है।17
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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