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________________ 126...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन • सूती चद्दर- कम्बली के साथ मिलाकर ओढ़ा जाने वाला सती वस्त्र . शरीर पर ओढ़ने की सूती चद्दर 11. रजोहरण और 12. मुखवस्त्रिका।। उक्त बारह प्रकार की उपधि जिनकल्पी साध के लिए उत्कृष्ट होती है यानी जिनकल्पी अधिक से अधिक बारह प्रकार की उपधि रख सकता है, परन्तु सभी जिनकल्पी बारह प्रकार की उपधि रखे ही, ऐसा नियम नहीं है। इनमें से इच्छानुसार उपधि रख सकता है। निशीथभाष्य में जिनकल्पी की उपधि के सम्बन्ध में दो, तीन, चार, पाँच, नौ, दश, ग्यारह और बारह ऐसे आठ विकल्प कहे गये हैं, जैसे करपात्री और वस्त्र त्यागी जिनकल्पी मुनि के लिए रजोहरण और मुखवस्त्रिका ऐसे दो उपकरण माने गए हैं। करपात्री और वस्त्रधारी के लिए वस्त्र सहित तीन उपकरण कहे गए हैं। इस प्रकार अन्य विकल्प भी जानने चाहिए। स्थविरकल्पी की उपधि- स्थविरकल्पी मुनि के लिए चौदह प्रकार के उपकरण माने गये हैं उनमें बारह उपकरण पूर्वोक्त ही हैं तथा शेष दो उपकरणों में 13वाँ मात्रक और 14वाँ चोलपट्टक है। ___साध्वियों की उपधि- जैन टीका साहित्य में साध्वियों के लिए पच्चीस प्रकार की उपधि का निर्देश किया गया है। जैन साध्वी अधिकतम पच्चीस प्रकार की उपधि रख सकती हैं। उपर्युक्त चौदह प्रकार के उपकरणों में से चोलपट्ट को छोड़कर तेरह उपकरण साध्वियों के लिए वे ही होते हैं तथा चोलपट्ट के स्थान पर चौदहवाँ उपकरण कमढ़क (शाटिका/साड़ा) होता है। शेष ग्यारह उपकरण निम्न प्रकार हैं 15. अवग्रहानन्तक- अवग्रह यानी योनि प्रदेश, अनंतक वस्त्र यानी योनि प्रदेश को ढकने का वस्त्र (लंगोटी) अवग्रहानन्तक है। 16. अवग्रहपट्टक- लंगोटी के ऊपर कमर पर लपेटने का वस्त्र। 17. अधोरुक उरू - साथल (आधी जांघों) को ढकने वाला जांघिया जैसा वस्त्र। 18. चलनिका- अधोरूक से बड़ा, घुटनों को भी ढंकने वाला बिना सिला हुआ वस्त्र। ___19. अंतर्निवसिनी- कमर से लेकर पिण्डलियों तक लंबा वस्त्र, जिसे पहनते समय फिट रखा जाता है अथवा आधे घुटनों को ढंकने वाला वस्त्र।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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