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________________ मुनियों के पारस्परिक आदान-प्रदान (साम्भोगिक) सम्बन्धित ...123 5. वही, 5934 6. वही, 5935 7. ओह अभिग्गह दाणग्गहणे, अणुपालणाय उववाते । संवासम्मि य छट्ठो, संभोगविधी मुणेयव्वो ॥ 8. उवही सुअ भत्तपाणे, दायणे य निकाए अ, किइकम्मस्स य करणे, समोसरणं संनिसिज्जा य, अंजली पग्गहे त्तिय । अब्भुट्ठाणे ति आवरे ॥ वेयावच्चकरणे इ अ । कहाए अ पबंधणे ॥ (क) समवायांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 12/78 (ख) व्यवहारभाष्य, 2351-2353 (ग) निशीथभाष्य, 2094 2097, 2107, 2110, 2103, 2111-2141 9. व्यवहारभाष्य, 2354 की टीका 10. आचारचूला, संपा. मधुकरमुनि, 2/1/6/311 11. स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 3/3/350 12. वही, 5/1/46 13. वही, 9/1 14. समवायांगसूत्र, 12/78 15. भगवतीसूत्र अंगसुत्ताणि, 25 / 586 16. बृहत्कल्पसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, पृ. 214 17. वही, 4/23-25 व्यवहारभाष्य, 2350 18. व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि 5/19, 20 19. वही, 5/19, 20 20. प्रवचनसार, 3/45-47 21. मूलाचार, 5/390-91
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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