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________________ xii...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन चार कषायों का निग्रह ऐसे 70 गुण समाविष्ट होते हैं। इसे चरण सत्तरी भी कहते हैं। इसी प्रकार करण सत्तरी के अन्तर्गत चार प्रकार की पिण्डविशुद्धि, पाँच समिति, बारह भावना, बारह प्रतिमा, पाँच इन्द्रियों का निरोध, पच्चीस प्रतिलेखना, तीन गुप्ति एवं चार अभिग्रह का समावेश होता है। ___ शास्त्रों में श्रमण चर्या का निरूपण विविध अपेक्षाओं से किया गया है। श्रमणाचार एक सूक्ष्म चर्या है। सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीवों के प्रति जयणा रखते हुए एवं अपनी समस्त मर्यादाओं का निर्वाह करते हुए श्रमण अपने आचार का पालन करता है। जैनागमों में भी मुनि जीवन के छोटे-छोटे पहलुओं का निरूपण मिलता है। मुनि दिन में कैसा आचरण करे, रात्रि में किस प्रकार का वर्तन करे, गुरु के पास कैसे रहे? किस ऋतु में किस प्रकार की मर्यादा रखे? आदि कई विषयों का वर्णन है। दशवकालिक सूत्र में कहा गया है- 'कहं चरे, कहं चिट्ठे, कहं मासे, कहं सए...। इससे स्पष्ट हो जाता है कि आगमों में मुनि के लिए छोटी से छोटी बातों का निरूपण किया है। मुनि जीवन सम्बन्धी नियमों का वर्गीकरण कई दृष्टियों से किया गया है। इनमें कुछ नियम उस कोटि के हैं जो अनिवार्य रूप से परिपालनीय हैं। कुछ उस स्तर के हैं जो उत्सर्ग और अपवाद के रूप में आचरणीय होते हैं। कुछ मर्यादाएँ इतनी महत्त्वपूर्ण है कि उनमें दोष लगने पर श्रमण स्वीकृत धर्म से च्युत हो जाता है तथा कुछ नियम ऐसे हैं जिनका भंग होने से मुनि धर्म तो खण्डित नहीं होता, किन्तु वह दूषित हो जाता है। मुख्य रूप से सभी नियमों को तीन उपविभागों में बाँटा जा सकता है- 1. आचार विषयक, 2. आहारचर्या विषयक और 3. दैनिकचर्या विषयक। आचार विषयक नियमों में मुख्यतया दस कल्प, दस सामाचारी, इक्कीस शबल दोष, बीस असमाधिस्थान, बाईस परीषह, बावन अनाचीर्ण, अठारह आचार स्थान का समावेश होता है। साध्वाचार का वर्णन हमें मूल आगमों में ही प्राप्त हो जाता है। आचारांग, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन आदि सूत्रों में मुनि धर्म सम्बन्धी नियमों का समुचित
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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