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________________ क्षुल्लकत्वग्रहण विधि की पारम्परिक अवधारणा... 19 3. श्वेताम्बर क्षुल्लक के लिए मुनियों द्वारा लायी गयी एवं स्वगृहीत दोनों तरह की भिक्षा ग्रहण करने का विधान है। आचारदिनकर के अनुसार वह गृहस्थ के घर पर भी निर्दोष भोजन कर सकता है, जबकि दिगम्बरपरम्परा में क्षुल्लक स्वयं ही भिक्षावृत्ति से अपने जीवन का निर्वाह करता है। यद्यपि यह आहारचर्या एक ही गृहस्थ के घर में सम्पन्न होती है। 4. श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों मान्यतानुसार क्षुल्लक गृहत्यागी होता है और यथासम्भव मुनिसमूह के साथ विचरण करता है। 5. श्वेताम्बर मतानुसार क्षुल्लक पात्र में भोजन करता है जबकि दिगम्बरपरम्परा में क्षुल्लक गृही के पात्र में भोजन कर सकता है एवं पाणिपात्री भी हो सकता है। वर्तमान में दोनों परम्पराएँ देखी जाती है। 6. श्वेताम्बर के अनुसार क्षुल्लक मुनिवेशधारी रजोहरण, मुखवस्त्रिका, आसन आदि धारण करता है जबकि दिगम्बर - परम्परा में वह एक कौपीन, एक चादर, एक कमण्डल तथा पींछी रखता है। यद्यपि लाटीसंहिता के अनुसार क्षुल्लक वस्त्रखण्ड से ही पीछी (प्रमार्जन) योग्य सब कार्यों को करता है। 7. श्वेताम्बर मतानुसार क्षुल्लक लग्न दिन में मुण्डन करवाता है जबकि दिगम्बर-परम्परा में जघन्योत्कृष्ट की अपेक्षा मुण्डन एवं केशलोच इन दोनों का प्रावधान है। 8. आचारदिनकर के निर्देशानुसार क्षुल्लक शिखा एवं उपवीतधारी भी होता है जबकि दिगम्बर - परम्परा के लाटीसंहिता में यह कहा गया है कि यदि प्रतिमाधारी श्रावक ने दशवीं प्रतिमा में चोटी और उपवीत को धारण कर रखा है तो उसे ग्यारहवीं प्रतिमा अर्थात क्षुल्लक अवस्था में भी चोटी एवं उपवीत को धारण करके रखना चाहिए, अन्यथा इच्छानुसार कर सकता है। इस प्रकार दिगम्बर- परम्परा में शिखा एवं उपवीत धारण करने का औत्सर्गिक नियम नहीं है। 9. श्वेताम्बर आचार्यों के अनुसार क्षुल्लक व्रतारोपण संस्कार को छोड़कर शेष संस्कार करवा सकता है तथा शान्तिक, पौष्टिक एवं प्रतिष्ठा-सम्बन्धी क्रियाकलापों को भी सम्पन्न कर सकता है। उसे लग्नदिन में गुरु द्वारा उक्त कृत्यों के लिए अधिकार दिया जाता है जबकि दिगम्बर क्षुल्लक को कौनसे अधिकार प्राप्त हैं ? इस विषयक स्पष्ट वर्णन पढ़ने में नहीं आया है।
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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