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________________ जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के ... Ivii विषयानुक्रमणिका अध्याय-1 : ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण विधि का मार्मिक विश्लेषण 1-11 1. ब्रह्मचर्य का शाब्दिक अर्थ 2. आधुनिक दृष्टि से ब्रह्मचर्य व्रत की उपादेयता 3. ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने का अधिकारी कौन ? 4. ब्रह्मचर्य व्रत दिलवाने का अधिकारी कौन? 5. ब्रह्मचर्य व्रतग्रहण हेतु मुहूर्त्त विचार 6. ब्रह्मचर्य व्रतग्रहण की मूल विधि 7. तुलनात्मक विवेचन 8. उपसंहार । अध्याय-2 : क्षुल्लकत्व ग्रहण विधि की पारम्परिक अवधारणा 12-22 1. क्षुल्लक के विभिन्न अर्थों की मीमांसा 2. क्षुल्लकत्व दीक्षा ग्रहण एवं उसे प्रदान करने का अधिकार किसे? 3. क्षुल्लकत्व दीक्षा हेतु काल विचार 4. क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की प्रामाणिक विधि 5. तुलनात्मक विवेचन 6. उपसंहार । अध्याय - 3 : नन्दिरचना विधि का मौलिक अनुसंधान 23-46 1. नन्दिरचना का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ एवं स्वरूप 2. नन्दिरचना की आवश्यकता क्यों? 3. नन्दिरचना का अधिकारी कौन ? 4. नन्दिरचना के लिए शुभ मुहूर्त का विचार 5. नन्दिरचना के लिए आवश्यक सामग्री 6. नन्दिरचना विधि का ऐतिहासिक विकास क्रम 7. समवसरण : एक परिचय 8. नन्दिरचना की प्रचलित विधि 9. नन्दिरचना सम्बन्धी विधि-विधानों के प्रयोजन 10. आधुनिक सन्दर्भों में नन्दिरचना विधि की प्रासंगिकता 11. तुलनात्मक अध्ययन 12. उपसंहार। अध्याय - 4 : प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा 47-124 1. प्रव्रज्या एवं दीक्षा शब्द के अर्थ 2. प्रव्रज्या संस्कार की आवश्यकता क्यों? 3. प्रव्रज्या के प्रकार 4. दीक्षादाता गुरु की योग्यताएँ एवं लक्षण 5. दीक्षादाता गुरु की योग्यता के विषय में अपवाद 6. दीक्षाग्राही की योग्यताएँ 7. दीक्षा के लिए अयोग्य कौन ? • दीक्षा अयोग्य पुरुष • दीक्षा अयोग्य नारी
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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