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________________ स्वकथ्य श्रमण संस्कृति मूलतः आध्यात्मिक है। अध्यात्म के धरातल पर ही जीवन का चरम विकास हो सकता है। निश्चय की अपेक्षा कहें तो अध्यात्म में रमण करना यही लक्ष्य की संसिद्धि है। मानव जीवन का लक्ष्य अविनाशी - शाश्वत सुख की प्राप्ति है । संसारी जीव असली सुख की पहचान नहीं कर पाता, वह इन्द्रियजन्य सुखों को वास्तविक सुख मान लेता है, जबकि वैराग्यवान, संयममार्ग पर आरूढ़ आत्मा सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर जड़-चेतन का विभेद करते हुए आत्म श्रेयस के मार्ग पर अविराम गति से प्रवर्द्धमान रहती है। रत्नत्रय की साधना ही श्रेयस प्राप्ति का एकमेव मार्ग है। सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र अपनी समग्रता में इस रत्नत्रय मार्ग का निर्माण करते हैं। अध्यात्म संस्कृति में संसार की प्रत्येक मानवीय सत्ता को रत्नत्रय का अवलंबन लेकर निर्वाण पद प्राप्ति का समानाधिकार है। यहाँ किसी जाति विशेष का प्रतिबन्धन नहीं है। फिर भी अयोग्य पुरुष के लिए चारित्र दान का निषेध किया गया है। सामान्यतः प्राणी किसी जाति-धर्म में पैदा होने से छोटा-बड़ा नहीं होता, वह तो अपने अच्छे-बुरे आचरण आदि से ही महान एवं क्षुद्र बनता है। रत्नत्रय रूप आचरण ही मानव को सफलता की प्राप्ति करवाता है। यहाँ प्रश्न उठ सकता है कि लक्ष्य संप्राप्ति में त्रिविध साधना मार्ग का ही विधान क्यों है ? वस्तुतः इस विधान के पीछे पूर्ववर्ती आचार्यों एवं ऋषि मनीषियों की मनोवैज्ञानिक समझ रही है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मानवीय चेतना के तीन पक्ष माने गये हैं- ज्ञान, भाव और संकल्प । इन तीनों पक्षों के परिष्कार के लिए त्रिविध साधना पथ का विधान किया गया है, क्योंकि चेतना के इन पक्षों के विशुद्धिकरण से ही जीवन में साध्य प्राप्ति सम्भव है। चेतना के भावात्मक पक्ष को सम्यक् बनाने एवं उसके सम्पूर्ण विकास के लिए सम्यक्दर्शन की साधना का विधान किया गया है। इसी प्रकार ज्ञानात्मक पक्ष के लिए सम्यग्ज्ञान का और संकल्पात्मक पक्ष के लिए सम्यक्चारित्र का विधान है। इस प्रकार त्रिविध साधना मार्ग की प्ररूपणा के पीछे जैनाचार्यों की एक गहरी मनोवैज्ञानिक दृष्टि रही है।
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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