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________________ 250...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता जाये तो उसका मूल्य घट जाता है। अत: सामाजिक समस्याओं के निराकरण में उपस्थापना जीवन्त आदर्श प्रस्तुत करता है। इस प्रकार उपस्थापना यानी सर्वविरति चारित्र का अंगीकार इस युग में अत्यन्त प्रासंगिक है। तुलनात्मक अध्ययन नवदीक्षित शिष्य को सर्वविरति धर्म में सुनियोजित एवं सुस्थिर करना उपस्थापना का मूल अभिप्रेत है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में इस विधि से सन्दर्भित कुछ प्रामाणिक ग्रन्थ देखे जाते हैं जो भिन्न-भिन्न सामाचारियों से प्रतिबद्ध होकर रचे गये हैं। यदि तत्सम्बन्धी ग्रन्थों का तुलनात्मक दृष्टि से चिन्तन किया जाए तो पारस्परिक समानताएँ एवं असमानताएँ सुस्पष्ट हो जाती हैं। नन्दीरचना की अपेक्षा - पंचवस्तुक, तिलकाचार्यसामाचारी, सुबोधासामाचारी, विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर आदि ग्रन्थों में यह निर्देश समान रूप से है कि उपस्थापना जिनभवन या प्रशस्त क्षेत्र में जिनबिम्ब की साक्षी में की जानी चाहिए। नन्दीश्रवण की अपेक्षा - उपस्थापना विधि के अन्तर्गत उपस्थापित शिष्य को नन्दीसूत्र का श्रवण करवाया जाना चाहिए या नहीं? इस सम्बन्ध में आचार्यों के भिन्न-भिन्न मत हैं। आचार्य हरिभद्र,201 तिलकाचार्य,202 श्रीचन्द्राचार्य,203 जिनप्रभसूरि204 ने नन्दीपाठ सुनाने को आवश्यक नहीं माना है, अत: उन्होंने अपने स्वरचित ग्रन्थों में नन्दीपाठ सुनाने का उल्लेख भी नहीं किया है; किन्तु आचार्य वर्धमानसूरि205 ने इसे अनिवार्य माना है इसलिए इस पाठ को तीन बार सुनाने का निर्देश किया है। इससे निश्चय होता है कि उपस्थापना के दरम्यान नन्दीसूत्र सुनाने की परम्परा परवर्ती है। यह विधि विक्रम की 14वीं शती के पश्चात अस्तित्व में आई और तपागच्छ आदि परम्पराओं में आज भी मौजूद है। प्रत्याख्यान की अपेक्षा - उपस्थापित शिष्य को उपस्थापना के दिन कौनसा तप करवाया जाना चाहिए? इस सम्बन्ध में मतान्तर हैं। पंचवस्तुक,206 सुबोधासामाचारी,207 सामाचारीप्रकरण,208 एवं विधिमार्गप्रपा209 के अनुसार उस दिन आयंबिल या नीवि तप करवाया जाना चाहिए। तिलकाचार्य सामाचारी210 के मतानुसार आयंबिल तप और आचारदिनकर211 के निर्देशानुसार उपवास या
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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