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________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 229 में सूर्य की प्रचंड गर्मी एवं उसकी रश्मियाँ शरीर में उष्णता के साथ-साथ रक्त शुद्धिकरण में भी सहायक होती हैं। इसलिए तो कहा गया है कि 'दिन में बनाओ, दिन में खाओ'। इस तरह शारीरिक स्वास्थ्य के लिये भी रात्रिभोजन का त्याग करना आवश्यक है। रात्रिभोजन करने से पेट की गड़बड़ी, आँख, कान, नाक, दिमाग, दाँत की गड़बड़ी, अजीर्ण आदि रोगों की संभावनाएँ बढ़ती हैं। आयुर्वेदाचार्य रात्रिभोजन के सम्बन्ध में कहते हैं कि हमारे शरीर में मुख्यतः दो कमल हैं। एक हृदयकमल जो अधोमुखी है और दूसरा नाभिकमल जो ऊर्ध्वमुखी है। सूर्यास्त होते ही दोनों कमल बन्द हो जाते हैं। हृदय कमल बन्द होने का अर्थ है हृदय का संकोच - विस्तार (फूलना और संकुचन) मन्द पड़ जाना। जिससे फेफड़े पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन ग्रहण नहीं कर पाते और पाचनतन्त्र अस्त-व्यस्त हो जाता है। आधुनिक डॉक्टर इस कमल को हृदय में थाइमस ग्रन्थि का रूप कहते हैं। यह ग्रन्थि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह समस्त रोगों से रक्षा करती है। यदि यह ठीक ढंग से कार्य न करे तो बालक बीमार पड़ जाता है। वस्तुतः रात्रिभोजन से होने वाले शीघ्रगामी दुष्परिणाम इस प्रकार जानने चाहिए रात्रि भोजन ↓ आँतों द्वारा भोजन को आगे बढ़ाने की क्षमता में कमी ↓ भोजन का ऊर्ध्वगमन ↓ अम्ल में वृद्धि हृदय की ओर रक्त प्रवाह में कमी ↓ वातावरण में ऑक्सीजन की कमी ↓ रक्त प्रवाह में और अधिक कमी आमाशय में जलन (एसीडिटी) ↓ हृदय रोग की सम्भावना अल्सर भोजन और शरीर का पारस्परिक गहरा सम्बन्ध है । सुयोग्यकाल में किया गया भोजन स्वास्थ्य के लिये कल्याणकारी होता है। जैन - जैनेतर सभी दर्शनों
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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