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________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 225 डी का निर्माण होता है। * सूर्य प्रकाश से भोजन के चयापचय प्रक्रिया में वृद्धि होती है। * दिनकृत भोजन से खनिज पदार्थों के संश्लेषण में वृद्धि होती है। * सूर्य प्रकाश से रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है आदि तथ्यों से रात्रिभोजन निषेध की मान्यता प्रामाणिक रूप से सिद्ध हो जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि सूर्य प्रकाश के पीले रंग में पारा, आसमानी में एल्युमीनियम, हरे में सीसा, लाल में लोहा, नीले में तांबा, नारंगी में सोना एवं बैंगनी में चाँदी का समावेश है। पीले रंग की किरणें लीवर, फेफड़े एवं पाचन प्रणाली के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। हरा रंग पीयूषग्रन्थि को सर्वाधिक प्रभावित करता है। आसमानी रंग चयापचय (मेटाबालिज्म) की प्रक्रिया को बढ़ाने में सहायक होता है, यह शरीर की अतिरिक्त गर्मी को दूर करता है। नीला रंग भक्ति, प्रेम आदि शुभ भावनाओं को जागृत करता है। यह पैराथायराइड ग्रन्थि को भी प्रभावित करता है। बैंगनी रंग सोडियम और पोटेशियम के सन्तुलन को बनाये रखता है, मस्तिष्क की दुर्बलता में टॉनिक का कार्य करता है और मन का केन्द्रीकरण करता है। इस प्रकार शरीर में जिन खनिज तत्त्वों की कमी से जो रोग उत्पन्न हुआ हो उसे सूर्य किरणों से दूर किया जा सकता है। 167 जहाँ तक धर्म विज्ञान का प्रश्न है, वहाँ रात्रिभोजन को हिंसा आदि कारणों से निषिद्ध बताया है। चिकित्सा शास्त्रियों का अभिमत है कि कम से कम सोने के तीन घंटे पूर्व तक भोजन अवश्य कर लेना चाहिये । जो लोग रात्रिभोजन के तुरन्त बाद सो जाते हैं, उनका भोजन अधिक समय तक आमाशय में ही पड़ा रहता है जिससे न केवल पाचन क्रिया प्रभावित होती है बल्कि अगले दिन मल त्यागने में भी विलम्ब होता है। परिणामस्वरूप कब्ज, हार्निया, बवासीर आदि कई रोग हो सकते हैं। सूर्यप्रकाश में केवल प्रकाश ही नहीं है, अपितु जीवनदायिनी शक्ति भी है। सूर्यप्रकाश से हमारे पाचन तंत्र का गहरा सम्बन्ध है। भारतीय आयुर्वेद के अनुसार शरीर में दो मुख्य कमल होते हैं1. हृदयकमल और 2. नाभिकमल । सूर्यास्त हो जाने पर ये दोनों कमल संकुचित हो जाते हैं, अतः रात्रिभोजन निषिद्ध कहा गया है। इस निषेध का तीसरा कारण यह भी है कि रात्रि में पर्याप्त प्रकाश न होने से छोटे-छोटे जीव भी खाने में आ जाते हैं। 168 जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश पाकर कमलदल खिल जाते हैं तथा उसके अस्त होते ही सिकुड़ जाते हैं, उसी प्रकार जब तक सूर्य का प्रकाश रहता है,
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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