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________________ 222... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता उत्साह, बल, सुखपूर्वक विहार का अनुभव करता हूँ। आओ, भिक्षुओं! तुम भी रात्रिभोजन विरत हो भोजन करो, रात्रिभोजन छोड़कर भोजन करने से तुम भी उनका अनुभव करोगे'। 164 इस प्रकार वैदिक एवं बौद्ध परम्परा में भी रात्रिभोजन का निषेध किया गया है। आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से आध्यात्मिक दृष्टि से रात्रिभोजन का त्याग करना बहुत बड़ा तप का लाभ माना गया है। रात्रिभोजन त्याग की मूल्यवत्ता बताते हुए ज्ञानी पुरुषों ने लिखा है - जो विवेकी मनुष्य रात्रिभोजन का सदैव के लिये त्याग करते हैं, उनको एक माह में पन्द्रह दिन के उपवास का फल प्राप्त होता है। 165 सुस्पष्ट है कि रात्रिभोजन त्यागने से बिना किसी कष्ट के सहज रूप से पन्द्रह दिन की तपस्या का फल मिल जाता है। इसके अतिरिक्त रात्रिभोजन त्याग का पालन करने से कर्मों की निर्जरा, गहरी निद्रा, धर्माराधना, नीरोगता, दीर्घायु आदि लाभ सहज में प्राप्त होते हैं। जो लोग रात्रिभोजन नहीं करते हैं वे सायंकालीन प्रतिक्रमण भी कर सकते हैं। इससे रात्रि में सोने से पूर्व प्रभु भक्ति, ध्यान आदि में भी मन लगता है । पारिवारिक सदस्य भी सायंकालीन एवं रात्रिकालीन धार्मिक क्रियाओं से वंचित नहीं रहते। इस प्रकार जैन धर्म में रात्रिभोजन का जो निषेध है उसके पीछे आरोग्य की दृष्टि भी है, अहिंसा की दृष्टि भी है और तप की दृष्टि भी है। तीनों ही दृष्टियों से रात्रिभोजन त्याज्य है। यौगिक विकास की दृष्टि से आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने योगशास्त्र में योग-साधना की दृष्टि से रात्रिभोजन का निषेध किया है। यौगिक क्रिया करने वाले साधकों ने मानव शरीर के विभिन्न अंगों को कमल की उपमा दी है जैसे मुखकमल, नेत्रकमल, हृदयकमल, नाभिकमल, चरणकमल आदि । इस प्रकार हमारे शरीर रूपी सरोवर में चारों ओर कमल ही कमल हैं। जिस तरह कमल सूर्योदय होने पर खिलता है और सूर्यास्त होने पर मुरझा जाता है उसी तरह हमारे शरीर रूपी सरोवर में स्थित सभी कमल सूर्योदय के साथ सक्रिय होते हैं एवं सूर्यास्त के साथ उनकी सक्रियता निर्बल हो जाती है। 166 अतः जब कमल सक्रिय हो यदि उस समय
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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